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________________ MAANAANMornhARANANAA mannnnnnnnnnnnnnnn. १४८ ] महावीर चरित्र। यके मनोहर या उसकी तरफ झुके हुए कंठको पुप्य. मालासे गाढ़तासे बांध लिया। मानों अलक्षित-भदृष्ट मनको कामदेवके पाशसे.: बांध लिया ।। ८१ ॥ इसके बाद पुत्र और पुत्रियोंकी यथोचित विवाह': करके विद्याधरों का स्वामी परस्परकी बंधुताकी श्रृंखलाके बंध जानेसे संतुष्ट हुआ। बहुत दिन के बाद बहिन-स्वयंप्रभा बलभद्र और नारायणने उसको. किसी तरह विदा किया। तब वह अपने नगरको गया ।। ८२ ॥ अपनेको इट और मनोज्ञ विषयों के द्वारा जिपकी बुद्धि आकृष्ट हो रही है। अर्थात निसका मन विषयों में तल्लीन हो रहा है ऐमा तृपिष्ठ. पूर्वोक्त प्रकारसे साम्राज्यको चिरकालतक भोगकर सोता हुआ ही अपने निदानके वंशसे रौद्रध्यानके द्वाग जीवनके विपर्यय-मरणको. प्राप्त हुआ ॥ ८३ ॥ जहां पर चिंतवनमें आ सके ऐमा दुरंत: (जिसका अंत भी दुःखरूप हो) घोर दुःख मौजूद है. जहाँकी । आयु तेतीस सागरकी है ऐसे सातवें नरकमें नारायणने पापके : निमित्तसे उसी समय जाकर निवात किया ॥ ८४ || बलदेवने : यश ही निसका अवशेष बाकी रह गया है ऐसे त्रिपिष्ठको देखकर उसके कंठको अतिचिरकालमें छोड़ा । और ऐमा विलाप किया कि निसको सुनकर शांतस्वरूपवाले मुनियों को भी अति ताप हो उठा। ॥८॥ जिनकी आंखोंमें जल भरा हुआ ऐसे संसारकी परिपाटीको वतानेवाले वृद्ध पुरुषों के द्वारा तथा वृद्ध मंत्रियों के द्वारासमझाये जानेपर और स्वयं भी संसारकी मशरण और प्रतिक्षणमें नष्ट होनेवाली स्थिति को समझकर बलभद्रने बड़ी मुश्किलसे चिरकाल में जाकर किसी तरह -शोकको छोड़ा ॥८६॥ स्वयंप्रभा जो कि निपिष्ठके पीछे आप भी . मरनेके.लिये उद्यत हुई थी उसको बलदेवने शांति देनेवाले.
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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