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________________ दुसयाँ सर्ग । [ १४५ ॥ ५९ ॥ मंत्र स्वयं अपनी बुद्धिसे कुछ निश्चय न कर सका तब नीति में प्रवीण मंत्रियोंके साथ २ एकान्त में बलभद्रसे प्रणाम 'करके इस तरह बोला ॥ ६० ॥ " आप पिताके सामने भी हमारे कुलके धुरंधर भग्रनेता थे पर अब उनके पीछे तो विशेषतासे हैं । जिस वनमें सूर्य प्रकाश करता है उसीमें चंद्रमा मी लोगों को समस्त पदार्थों का प्रकाश करता है ।। ६१ । इमलिये हे आर्य ! 'तत्वतः अच्छी तरह विचार करके कि राजाओं में या विद्याधरोंमें "कुढ़की अपेक्षा और रूपकी अपेक्षा तथा कला गुण आदिकी अपेक्षा आपकी पुत्रीके योग्य पति कौन है उसको मुझे बताइये । " ॥ ६२ ॥ नारायणके इस तरहके वचन कहने पर दांतोंकी कुंद समान सफेद किरणोंसे प्रसिद्ध बने हुए हारकी किरणोंसे ग्रीवाको ढकनेवाला बलभद्र इसतरह वचन बोला ॥ ६३ ॥ " जो छोटा - हैं वह भी यदि लक्ष्मीसे अधिक है तो वह बड़ा ही है। आप सरीखे महात्मा इम विषयमें वय- उम्रकी समीक्षा नहीं करते । अतएव तुम हमारे गति-निधि हो, नेत्र हो, कुलके दीपक हो ॥६४॥ जिस तरह आकाश में चंद्रकला के समान भाकार रखनेवाला कोई भी नक्षत्र बिल्कुल देखने में नहीं आता उसी तरह इस भारत में भी रूपकी अपेक्षा तुमारी पुत्रीके समान कोई क्षत्रिय भी देखने में नहीं आता ॥ ६५ ॥ अपनी बुद्धिसे कुछ काल तक अच्छी तरह विचार करके यत्नसे राजाओं में से किसीको यदि उस निर्दोष कन्याको हम दे. मी दें तो मी उससे इसका निश्चय नहीं होता कि क्या उन दोनोंमें समान अनुराग होगा ! ॥ ६६ ॥ सौभाग्यका निमित्त न केवल रूप है, न कला है, न यौवन है और न आकार है। स्त्रियोंको
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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