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________________ नववा सर्गः [१२७ immmmm करने के लिये त्रिपिष्टके भयंकर निर्वयं सेनापतिने बाण उठाकर उससे युद्ध करना शुरू किया ॥ ५५ ॥ वेगकी वायुसे जिसकी ध्वना सतर लंबी होगई, जिसमें मनके समान वेगवाले घोड़े जुते हुए हुए सेनापतिने उसके सन्मुख ना कर प्रत्यंचाके शब्दसे दिशाओंको शन्दायमान करते हुए वाणोंसे उसको तुरत वेध दिया ॥ ५६ । जिसके संधान और मोक्षवाण चढ़ाने और छोड़नेके कालको कोई लक्ष्यमें ही नहीं ले सकता था, जिसकी सुंदर प्रत्यंचा सदा खिची ही रहती ऐसे उस भीम धनुर्विद्या में अतिदक्षं सेनापतिने अपने वार्णोसे मंत्री बाणोंको बीचमें ही काटडाला ।। ६७. जिनके आगे अर्धचन्द्राकार पेंना भाग लगा हुआ ऐसे वाणोंसे उसने घनांके डंडेके सथ २ मंत्रीके धनुपको भी 'बड़ी जल्दी छेद डाला इसार मंत्रीने कोरसे निर्दय होकर सेनापतिके वक्षःस्थलपर शक्ति का प्रहार किया ॥ ५८ ॥ उदार पराक्रमके धारक उस भीमसेन पतिने धनुषको छोड़कर तलवारको लेकर अपने यसें मंत्री के रथमें कू शिरके अर श्रेष्ठ खगका प्रहार कर उसको कैद करलिया ॥ ५९॥ शत्रुओंके सैकड़ों आयुधोंके पड़नेसे जिनका शरीर क्षत होगया है और क्षा:थल फट गया है ऐसा वह शतायुध युद्ध में धूमध्यनको जीा कर बहुत ही सुंदर मालुम पड़ने लगा क्योंकि राजाओं का भूपण शुरता ही तो है ॥६०॥ अपने शत्रुजित् शत्रुनयः इस नामको मानों सार्थक करनेके लिये ही उस . प्रतापीने युद्ध में उग्र अशनिवोषको जितकी : कि भुनाओंका.. अराक्रम दूसरों के लिये असाधारण था एक क्षणमें जीत लिया ॥६॥ उस जयचे (बलदेवने) युद्धमें समस्त सेनाको कंपा देनेवाले अकए
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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