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________________ नववा सर्ग। [१२५ लोहमयी बाणोंसे शरीरके विदीर्ण हो. नानेपर भी कोई २ घोड़ा वेगसे इधर-उधर दौड़ने लगा.। मालूम हुआ मानों वह अभी २ मरे हुए अपने स्वामीकी शूरताको युद्धकी रंगभूमिमें प्रकाशित कर रहा है ॥४२॥ किसीके मस्तकमें शत्रुने लोहमय मुद्गर ऐसा मारा कि जिससे वह विवश: होकर जमीनपर लोट गया । परंतु तो भी उसने शरीरको छोड़ा 'नहीं । धीर पुरुषोंके धैर्यका प्रसर निष्कंप. होता है, उसका. कोई हरण नहीं कर सकता ॥ १३ ॥ पॅने अग्रभागसे रहित भी वाणने सुभटके अभेद्य कवचको मी भेद कर उसके प्रणोंको बड़ी जल्दी हर लिया। दिनोंके आयुके पूर्ण हो जानेपर प्राणियोंको कौन नहीं . मार देता है ।। ४४ ॥ अतुल्य पराक्रपके धारक किसी ने अपने शरीरके द्वारा चारो तरफसे स्वामीकी वाणोंसे रक्षा करते हुए अपने शरीरको एक क्षणभरमें ना कर दिया । दृढ़ निश्चय रखनेवाला वीर पुरुष क्या नहीं कर डालता ||३५|| शूरवीर लोग आपसमें एक दूसरेकी तरफ देखकर और कुछ-क्षत्रिय वंशके अभिमान, विपुल लज्जा, स्वामीका प्रसाद तथा निज पौरुष इन बातोंका ख्याल करके शरीरके घावोसे भरे रहने पर भी गिरे नहीं ॥१६॥ वह दुर्गम युद्धांगण हाथियोंके टूटे हुए दांतोंसे तथा छिन्न हुए शरीर और सूड़ोंसे, टूट फट कर गिर पड़ने वाली अनेक वनाओंसे, जिनके पहिये और धुरा नष्ट हो चुके हैं ऐसे रयोंसे भरगया ॥४७॥ मनुष्योंकी आंतोंकी मालासे . जिनका गला बिल्कुल मरा हुआ है, जो खूनकी मघको पीकर . बिल्कुल मत्त हो गये हैं ऐसे राक्षस मुर्दीओंको पाकर या लेकर कबंधों इंडोंके साथ २ यथेष्ट नृत्य करने लगे ॥१८॥ जहां तृणके . .
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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