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________________ १२० ] महावीर चरित्र | जान मार . २ 1 ॥ १२ ॥ प्रच अपने मानसिक पराक्रम और अखंडित चापका अवलंबन लेकर वहींडटा रहा | १० || धनुपको कानतक खींचकर किमी २ योद्धाकेद्वारा कठोर मुष्टिसे छोड़े हुए तीक्ष्ण बाणने को भी भेदकर दूसरे भटको छेड़ डाला । यह निश्चय है कि जिन अच्छी तरह प्रयोग किया जाय वह क्या सिद्ध नहीं कर भक्ता ॥ ११ ॥ हाथीवान् तो जबतक मदोन्मत्त हाथीके मुखपर वस्त्र ने भी नहीं पाता है तक- एक क्षणभर में ही योद्धालोग उसे कर भेड़ देते हैं जिससे वह बिल्कुल सिमजाता है ड हाथी मन्द २ हवा के लिये प्रतिपक्षी - हाथी कुछकर - मुंडसे स्वयमेव मुखवस्त्रको हटाकर पीलवान् की मी पलून कर चन्द्रा गया ॥ १३ ॥ जिनके कुंपस्थल में बछियां बसी हुई हैं ऐसे, गजेंन्द्रोंके गंडस्थल ऐसे मालूम पड़ते थे मानों अपने पंखोंसे सुंदर मालूम पड़नेवाले शब्द रहित मयूरोंके समूह जिनपर बैठे हों। ऐसे. ये पर्वतों के शिखर ही हैं ॥ १४ ॥ किन्ही २ प्रचान योद्धाओंने युद्ध में अपनी विशेष शिक्षाको दिखलाते हुए जिनपर अपने नामके अक्षर खुदे हुए हैं ऐसे अनेक वाण मारकर राजाओंके श्वेत छत्रों को जमीनपर लुढ़का दिया ॥ १५ ॥ चिरकाल तक युद्धकी धुराको धारणकर मरजाने वाले तेजस्वी क्षत्रियश्रेप्टोको जब लौटकर -. शूरवीरोंने देखा तब उनके नाम और कुलको माोंने सुनाया. ॥ १६ ॥ हाथियोंके कुम्मस्थल खड्गोंके प्रहारसे फट गये। उनमेंसे चारों तरफको उछलते हुए बहुतसे मोतियोंसे आकाशश्री दिनमें भी तारागणोंसे व्याप्त मालूम पड़ने लगी ॥ १७ ॥ कोई २. मुख्य योद्धा चित्र लिखित योद्धाके समान मालूम पड़ते थे !
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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