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________________ ११८] महावीर चरित्र । करनेवाले हलके साथ २ उन्नत अद्भुत और कभी व्यर्थ न होनेवाले : मूमल तथा युद्धमें शत्रुओंको भय उत्पन्न करनेवाली प्रकाशमानः गदाकी सेवा करने लगी ॥ ८६ ॥ गंभीर ध्वनि करनेवाला निर्मलं पांचजन्य शंख, कौमुदी गदा, अमोघमुखी नामकी दिव्य शक्ति, पुण्य कर्मसे प्राप्त हुआ शई नामका धनुष, नंदक नामका यज्ञ, किरणोंसे व्याप्त कौस्तुभ रत्न, जिनकी यक्षाधिर रक्षा करते हैं ऐसी : इन अत्युत्तम वस्तुओं के द्वारा त्रिपिष्ट नारायण राज्य लक्ष्मीकी जय संपदाकै स्थानको प्राप्त हुआ। ८७॥ : . .. इस प्रकार अशग कार्यकृत वर्द्धमान चरित्रमें 'दिव्यायुधागमन नामका आठवाँ सर्ग समाप्त हुआ। बक्का वर्ण। नारायणने पृथ्वीसे उठी हुई गधेके बाल समान घूमर धूलिसे व्याप्त अश्वनीडकी सेनाको ऐसा देखा मानो वह अपने (त्रिपिष्टके ) तेजसे ही मलिन हो गई हो ॥ ॥ उसी दोनों तरफकी सेनाओंके युद्धके बाजे बनने लगे, गन गर्नने लगे और घोड़े हीसने लगे। वीर पुरुष जो कायर है वह लौटकर जाता है। यह कह कहकर मामीतोंकी तृणकी तरह अवहेलना • करने लगे ॥ २ ॥ घोड़ों के टापोंके पड़नेसे नवीन मेव समूहके . समान सांद्र-धनी धूलि जो उठी वह दोनों तरफकी सेनाओं के · आगे हुई परंतु उस तेजस्वीने अपने तेजसे-उसका निवारण किया
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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