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________________ ११० ] महावीर चरित्र | [ बलवान् होकर तुम उसीकी क्या तारीफ करते हो? ये क्रिया भले आदमियोंको अच्छी नहीं लगती ||३०|| योग्य संगमचाले -पु- रुपको देखकर दुर्जन विना कारणके ही स्वयं कोप करने लगता है। आकाश में निर्मल चांदनी देखकर कुत्तेके सिवाय दूसरा कोन भोंकता है ? ||११|| जो विवेकरहिन होकर सत्पुरूषोंके अमाननीय मार्ग में स्वेच्छाचारितासे प्रवृत्ति करता है वह निर्लज्ज निश्वयसे पशु है । अन्तर इतना ही है कि उसके बड़े २ सींग और पूंछ नहीं: है । अतएव कौन ऐसा होगा जो उसको दण्डित न करेगा (- दण्ड · देना - सजा देना; दूसरी पक्षमें डण्डा मारना ) ॥ ३२ ॥ जिसका जीवित रहना मांगनेपर ही निर्भर है. ऐसा कुत्तेका बच्चा यदि मांगता है तो ठीक ही है; पर मनुष्यों में तो अवग्रीवके : "सिवाय दूसरा और कोई ऐसा नहीं है जो इमं तरहकी याचनाको तरकीब जानता हो ॥ ३३ ॥ मेरी लक्ष्मी दूसरोंसे अत्यधिक है। मैं. दूसरोंसे दुर्जय हूं, इस तरहका गर्व करके जो राजा दूसरोंका : • निष्कारण तिरस्कार करता हैं, भला वह जगत में कितने दिन तक जीवित रह सकता है ॥ ३४ ॥ सत्पुरुष दो आदमियोंको ही अच्छा मानते हैं, और उन्ही प्रशस्त जन्मकी सभाओं में प्रशंसा होती हैं। "एक तो वह शत्रुके सामने आनेपर निर्भय रहता है, दूसरा वह जो सम्पत्ति पानेपर भी मनमें मद नहीं करता ॥ ३६ ॥ सत्पुरुष उस दर्पणके समान है नो सुवृत्तता ( सदाचार, दूसरी पक्ष में गोलाई को धारण करता हुआ, भूति ( वैभव - ऐश्वर्य, दूसरी पक्ष में महम) को पाकर निर्मल बनता है । और दुर्जन उस गधेके समान है जो 1 प्रेत भूमिमें गढ़े हुए शूलकी तरह भयंकर होता है ॥ १६॥ P
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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