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________________ r awunuwaruwww .AA..... .. . . . . . ९४ ] महावीर चरित्र । फल प्रशम-कपायोंकी मंदता और विनय है ॥ १४ ॥ जो विनय और प्रशमको धारण करनेवाला है उसको साधु लोग भी स्वयमेव नमस्कार करने लगते हैं । जगन्में साधु समागम अनुरागको करने लगता है, केवल इतना ही नहीं, अनुरागसे पराजित हुआ सारा जगत् स्वयमेव दासनाको प्राप्त हो जाता है । इसलिये हे महीपतः ! विनय और प्रशमको कभी न छोड़ना ॥१५-१६॥ वेगक साथ चलनेवाले हरिणोंको भी वनमें नियमसे बनेचर पकड़ लेते हैं। कुत्सित गुणवाल प्रशंसनीय गुणमे भी किसके कार्यको सिद्ध नहीं करता ? ॥१॥ पायक जानकारोंने यह कहा है कि कठोरस कोमल अधिक मुखकर होता है। सूर्य पृथ्वीको तपाता है और चंद्रमा आल्हादित करता है ॥१८॥ प्राणियोंके लिये प्रिय वाक्योंकि सिवाय और कोई अच्छा वशीकरण नहीं है। कोयल यथोचित मधुर शब्द करती है इसीलिये लोकोंकी प्रियपात्र होती है ॥ १९ ॥ अतएव हे विद्वत् ! आप सरीखे भूपालोंको सामवे.-सांत्वनाक सिवाय दूसरा कोई ऐसा अन्न नहीं है जो विनयके लिये माना जाय । यह तीक्ष्ण नहीं है तो मी हृदयमें प्रवेश करनेवाला है। अपेक्षारहित है. तो भी सकल अर्थका साधक है ॥२०॥ यदि कोई राजा कुपित हो रहा हो तो उसको शांत करनेके लिये विद्वान्लोग पहले सामसांत्वनाका ही उपयोग करते हैं। कीचड़-मिश्रित जल क्या निर्मलीके बिना प्रसन्न हो सकता है ॥२१॥ उत्पन्न हुआ क्रोध कोर वचन बोलनेसे और बढ़ता है। किंतु कोम शब्दोसे वह शांत हो जाता है। जिस तरहसे कि दावानल स्वासे घपकता है, किंतु मेंबांना बहुतसा जलं पड़नेसे शांत--हो... जाता है ॥ २२ ॥ जो
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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