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________________ .९० ] महावीर चरित्र । तक भी सहसा बहते रहने दिया जाय तो थोड़े ही कालमें वे प्राणोंक ग्राहक हो जाते हैं। कंवल एक मेव-शत्र अपन समयपर तीन तलवारके समान विजलीको लेकर ना विकराल होकर गर्जना करता है व राजहंस पक्षयुक्त (सेनादिक सहायकोंसे युक्त, हमकी पक्षने पखासे युक्त)त्या पद्माकरका (लक्ष्मीका, पसमें कमल समूहका) अवलंबन लेकर भी पृथ्वी में प्रतिष्ठाइज्जत, दूसरी पक्ष में स्थिति)को नहीं पाता। ॥ ३२ ॥ जीतनेकी इच्छा रखनेवाला मनुष्य, अत्यंत प्रतापशाली तेजस्वी शरीरसे अभिन्न अगणित सहायकों के साथ साथ उयुक्त होकर, समस्त दिशाओंको प्राप्त करनेवाले करोंसे सूर्यको तरह क्या समत मुवनको भी सिद्ध नहीं कर लेता है ? ॥६॥ मदनलन, सिंचन कर मीतके समान गंडस्यलोंको सुगंधित करनेवाले, निनकी कायकी ऊंचाईले देखकर एसा मालूम पड़ने लगता है मानों ये व फिन्त अननगिरि पर्वत ही हैं, ऐसे अनार समान सुंडोंको धारण कानवाले अनेक हाथियोंका सिंह जो बंध करता है सो सिका उपदेश पाकर!" ॥६॥इस तरह अपने वचनोंसे उधार वोधक देने • वाले प्रमाणभूत मंत्रीक वाक्योंका कोपसे उल्लंघन करके अश्वग्रीव इस तरह अत्यंत स्वतंत्रताको-जन् कद्धताको प्राप्त हो गया जिस तरह हत्ती मत्त पीलवानका उल्लंघन करके स्वतंत्र हो जाता है ॥६५॥ प्रसिद्ध सत्र पराक्रमको धारण करनेवाला दुर्वार अश्वग्रीव एक क्षगके बाद-शीघ्र ही जिस तरह कल्पकालके अंत समयमें समुद्र कल्लोलोंसे भर जाता है-आच्छन हो जाता है उसी तरह आकाशको असंख्य सेनासे आच्छन्न करता हुआ डंडा ॥६६॥ उल्टीबाक बहनेसे जिसकी ध्वनायें कांप रहीं थीं ऐसी सेनाको स पर्वतके ऊपर
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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