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________________ (२] महावीर चरित्र । करनेमें अति चतुर चारण-कत्यक तया चन्दिननोंक कोलाहल सम्पूर्ण दिशायें शब्दायमान हो उठी थीं। नगर एवं विद्याधरोसे च्यात उपवन दोनों ही मानों परस्परकी विभूतिको जीतनकी इच्छा एक दूसरेसे अधिक रमणीय बन गये ॥ १९ ॥ संभिन्न नामक ज्योतिपीने विवाहके योग्य जो दिन बनाया उस दिन विधाघराके इन्द्र ज्वलननटीने पहले तो निनमंदिर तथा मंदिर मेरुके उपर । जिनेन्द्रदेवकी पूना की पीछे अपने निवासस्थान कमलको छोड़ देनेवाली लक्ष्मीके समान अपनी पुत्रीको विधिपूर्वक त्रिपिट नारायणके लिये अर्पण किया ॥ २० ॥ समस्त शत्रुओंको निःशेष करनेवाला नमिवंशकी धना भून ज्वलनटी, बाजुबंद, हार, कड़े, निर्मल कुंडल इत्यादि भूपोंसे दूसरे राजपुत्रोंका. मी सम्मानकर कन्यादान-विवाहको पूराकर, अपनी रानीके साथ २ त्रिता-समुद्रके पार तर गया ॥ २१ ॥ विनयके छोटे भाई त्रिपिष्टको इस प्रकार अपनी पुत्री देकर वह विद्याधरोंका स्वामी बहुत ही प्रान हुआ। भला कौन ऐसा होगा जो बढ़ते हुए महान् अभ्युदय और वैभत्रके पात्र महापुरुष के साथ सम्बन्धको पाकर संतुष्ट न हो ॥ २२ ॥ विद्याधरोंका चक्रवर्ती-अश्वग्रीव समाचारों का पता लगानेवाले अपने दूतके द्वारा इस वातको सुनकर कि विद्याधर पतिने अपनी कन्याका दान भूमिगोचरीको किया है उसी समय कुपित हुआ जैसे कि सिंह नवीन मेघके गंभीर-शब्दपर कोप करता है। अथवा वह सिंहकी तरह नवीन मेवके समान गंभीर. शब्द करने गर्नने लगा ॥.२३ । उसकी भयंकर दृष्टि कोपसे पल्लवित हो गई । जिससे ऐमा जान पड़ने लगा मानों वह समामें बहुतसे
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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