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________________ 78 ACT III 28-31 दत्तोत्सेकः प्रलपति मया याज्ञवल्क्यानुरोधा न्मिथ्याध्मातः किमपि जरसा जर्जरः क्षत्रबन्धुः ॥२८॥ जन । सविगम्। किमत्र बहुना। ज्याजिया वलंयितोत्कटकोटिदंष्ट्र मुद्गारिघोरघनघर्घरघोषमेतत् । पासप्रसक्तहसदन्तकवक्तृयन्त्रजम्भाविडम्बिविकटोदरमस्तु चापम् ॥२९॥ इति धनुरारोपयति ॥ विरम नरपते कथं विजेऽस्मि नविरतयज्ञवितीर्णगोसहस्रः। तव पलितनिरन्तरः पृषकं __ स्पृशति पुराणधनुर्धरस्य पाणिः ॥३०॥ जन । सखे महाराज दशरथ । अस्मानधिक्षिपतु नाम न किञ्चिदेतत् कस्य विजे परुषवादिनि चित्तभदेः । . वत्सस्य मङ्गलविरुद्धमयं तु पापः कर्णे रटन" कुटु" कथं नु वटुर्विषयः ॥३१॥ नेपध्ये। 10 15 1 रजसा for जरसा I], w, In only | 10 धनुरस्य for धनुर्धरस्य E only ' सवेगम् E, I, only 11 अस्मानविक्षिपतु Bo अस्सामधिक्षेपतु 3 किमलमन्त्र for किमत्र E only |E अस्मानधिक्षिपतु cett + वलयित्वो for वलयितो° Sc, I only | 12 न om Bo only 5 °कोष्टि• for °कोरि• E only • •घर्घर° E °घुर्घर Mt °घर्घर° cett 18 Folio 24 beginning with water and 'धनुरारोपयते Bo धनुःशरारोपयति | ending with गुरी वसिष्ठ (p 82, verse 39 F धनुरारोपयति cett below) missing, Cu कथञ्चिद् for कथं w only * कटु om Bo only निरन्तर र निरन्तरः , नैरन्तरः | 15 नु I, K, Bo, w तु E, Md न Sc Bo famat: cett । नु om I2
SR No.010406
Book TitleMahavira Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherUniversity of Panjab Lahore
Publication Year1928
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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