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________________ श्रीमहा० । दद्गुण मरणभयविहुरेण सिग्धं अवक्कमिऊण मए वाहरिया आरखिया, त य जाव मत्ता इव मुन्छिया इव गयचे- सरगेनचरित्रे यणा इव बहु बोल्लावियावि हुंकारमेत्तमवि न दिति ताव नायं मए नूणमेए ओसोवणिमंतेण वा ओसहपओगेण वृत्तं. २ प्रस्तावःवा एएहिं चोरेहिं निहयचेपणा कया भविस्संति, कहमण्णहा एवं निद्दा विवेजा ?, होउ वा ताव सजीवियं | ॥ २४॥ रक्खामित्तिपरिभाविऊण सणियं सणियं निलको एगत्थ वणगहणे, भिल्लावि भवणसिलार्थभाइयं मोत्तॄण सेस 41 वराडमेत्तपि गहाय गया, कमेण पहाया रयणी, उडिओ जणो, जाया पुरे वत्ता, आगो लोओ अहं च, अवलोइयं से गेहं जाव तत्थ एगदिणभोयणमेत्तंपि नत्थि, खीणविभवत्तणओ कलंतराइपउत्तंपि दविणजायं न पावेमि, जो नत्यि कोऽवि निव्वाहो तो चिंतियं मए नीसेसजणपहाणतणेण ठाऊण एत्थ नयरंमि । संपइ कप्पडिओ इव कह निवसंतो न लजामि ? ॥२०४ ॥ दीणाण दुत्थियाण य दाउं भोयणविहिं कुणंतस्स । इण्हिं तु निओदरभरणमेत्तनिरयस्स का सोहा ? ॥२०५॥३॥ कह वा तुरगारूढो भुवि भमिऊण पुरिसपरियरिओ । वञ्चिस्स एगागी इण्हिं तु पयप्पयारेण ? ॥ २०६॥ 13 कह वा सहपंसुकीलियबंधवलोयस्स पंछियत्थस्स । अविपूरितो जीयं निरत्ययं उबहिस्सामि ? ॥ २७ ॥18॥ २१ ॥ दुब्बहगबुडुरवइरिविसरदुब्बिसहदुव्वयणजायं । पन्भठ्ठलठविभवो पचक्खं कह सुणिस्सामि ? ॥ २०८ ॥ ता मोत्तूण इमं ठाणं देसंतरं वचामित्ति चिंतिऊण चलिओऽहमुत्तरावहाभिमुहं, कालंतरेण पत्तो एगमि सन्नि
SR No.010405
Book TitleMahavira Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size277 MB
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