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________________ ७प्रस्ताव श्रीगुणचंद व ठियं करयले पुरंदरस्स, मुक्कं च तेण, तं च तहाविहमदिट्टयुवं वेगेणागच्छमाणं पेच्छिऊण संभग्गसमरमच्छरुच्छाहो चमरेन्द्र स्पा समरियसामाणियासुरसिक्खावयणो वयणविणिस्सरतदीहनिस्सासो पुन्नेहिं जइ परं पावेमि रसायलंति कयसंकप्पोइजनमोचनं, संभमुष्पिच्छतरलतारयच्छिविच्छोहसंवलियनहंगणाभोगो कहिंपि अत्ताणं गोविउमपारयंतो भयवसपकंपमाणपाणिसं॥ २३९॥ पुडपडियं फलिहरयणंपि अविगणतो अविमुणियतकालोचियकायबो अलाहि सेसोवाएहिं, परं तिहुयणपहुणो पाय-12 | पंकयमियाणिं सरणंति सुमरिऊण उड्डचरणो अहोसिरो वेगगमणसमुप्पन्नपरिस्समनिस्सरतकक्खासेयसलिलोब उ-131 किट्ठाए चवलाए [दीहाईए] गईए जिणाभिमुहं पलाइउं पत्तो, अविय निदलियदप्पविभवत्तणेण जायं न केवलं तस्स । लहुयत्तं देहेणवि वेगेण पलायमाणस्स ॥ १॥ 1] एसो सो किं वचइ जेण तहा जंपियं हरिसमक्खं । पहसिजंतो इय दिन्नहत्थतालेहिं तियसेहि ॥ २ ॥ 18] तह कहवि देहपदभारभरियमुवणोदरोऽवि चमरिंदो । तवेलं लहु जाओ जह न मुणिजइ पयंगोच ॥३॥ स तं च कुलिसं सुरवइपयत्तपक्खित्तं जलणजालाकलावाउलियदिसामंडलं कवलयंतं व एकहेलाए सयलगाखंडल पडिवक्खं जावऽजवि थेवमेत्तेण न पावइ सिरमंडलं ताव भयगग्गरसरो-भयवं! तुममियाणि सरणंति जंपगाणो ॥ २३९ ॥ पविट्ठो जयगुरुणो उस्सग्गद्वियस्स चरणकमलंतरे चमरो एत्यंतरे सहस्सनयणस्स जाओ चित्तसंकप्पो-अहो न खलुश दणुवइणो अप्पणो सामत्थेण सोहम्मकप्पं जाव संभवइ आगमणं, केवलं भगवंतं तित्थयरं अरिहंतचेइयं वा भावि NEC-2020 EmmanmazanamunamaACINANummmmmsmaranamamHERE 5 6265
SR No.010405
Book TitleMahavira Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size277 MB
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