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________________ को- ६ प्रस्तावः RESC मीलनं विहार -- श्रीगुणचंदा एगागि चिय लुणिउं अपारयंतो परंपि बहुलोगं । समुचियमुलपयाणेण सस्सलुणणे पयट्टेइ ॥ २ ॥ चौराके महावीरच० तह मज्झवि चिरभवसंभवस्स कम्मस्स निजरणिमित्तं । जुजइ अणजजणसंगएसु देसेसु विहरेउं ॥३॥ गोशाला जं तत्थ अणजजणो निकारणकोवसंगओ धणियं । उवसग्गणेण काही साहेनं कम्मनिजरणे ॥ ४॥ कालमेघ॥ १९५॥ इय चिंतिऊण नाहो लाढाविसए मिलेच्छजणकिन्ने । गोसालेण समेओ अह निजाओ विजियमोहो ॥ ५ ॥ अअनार्येषु अह तत्थ गयं नाहं हेरियबुद्धी' केइ पाविट्ठा । निगुरमुट्ठिपहारेहिं विवंति निरणुकंपा ॥६॥ अन्ने असम्भवयणेहिं तज्जणं हीलणं च कुवंति । अइचंडतुंडसाणेहि पेसणेणं वहंति परे ॥ ७ ॥ वंतरसुरऽसुरवइजक्खरक्खसपमुहंमि देवसंघाए । बहुमाणपरेऽवि जिणो एगागी सहइ उवसग्गे ॥ ८॥ धम्मायरिओ एसोत्ति मज्झ हिययंमि निहियपडिबंधो । पट्टि ठिउ गोसालोऽवि सामिणो दुक्खमणुहवइ ॥९॥ अह तत्थ भूरितरकम्मनिज्जरं पाविऊण जिणनाहो । आरियखेत्ताभिमुहं आगच्छइ पुनवंछोव ॥ १० ॥ आरियखेत्ताभिमुहंमि तस्स भयवओ पुन्नकलसाभिहाणगामसन्निहिमि बट्टमाणस्स दोन्नि चोरा लाढाविसयमुसताणट्ठा नीहरता अवसउणोत्तिकाऊण जमजीहासन्निहं खग्गं उग्गिरिऊण धाविया संमुहं, एत्यंतरे पुरंदरो कहिं | 8. जिणो वसइत्ति जाणणठं जाव ओहिं पउंजेइ ताव पेच्छइ थेवेणासंपत्ते आयड्डियकरवाले चोरे वहनिमित्तं ।१।। जिणस्स उवहिए, अह जायतिबकोवावेगेण तेण तहहिएणेव समुत्तुंगगिरिसिहरदलणदुल्ललिएण निहया कुलिसेणं, PA - १९५॥ -
SR No.010405
Book TitleMahavira Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size277 MB
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