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________________ -96--50 जायपञ्चभिन्नाणाए तीए गाढमालिंगिऊण सुहासणत्यो हरिसुल्लसियलोयणाए पुच्छिओ-अज! कत्तो कह वा समागोऽसित्ति ?, तेणावि से साहिओ सामन्नेण वुत्तंतो, चंदलेहाए भणियं-मुह कयं तुमए जमेत्य पत्थाने समाग-51 ओऽसि, जओ अम्ह पडिपुन्ना इयाणिं सवे मणोरहा, गोभदेण भणियं-कहं चिय?, तीए भणियं-जं तहया शुभए । मम बंभचेरखंडणा रखिया तेण सत्तरत्तपजते सम्ममाराहिजमाणा सिद्धा भगवई सयंपभाभिहाणा विजा, सो रस दविजासिद्धो ईसाणचंदो सबकामुयरक्खावलयविहूणो जण्हुकन्नाजलमझगओ झसोब विवसो पाविमो. जो | हेण भणियं-कहमियाणिं सो संठविओ?, तीए भणियं-जहा दुट्ठकरिवरो, तेण भणियं-किमित्थं पुण तहा परि जइ?, तीए भणियं-कसिणचउद्दसीए चंडिगाए बलिविहाणत्थं, गोभद्देण भणियं-जइ एवं ता दंसेसु तं थेवदिणपरि चियत्तणेण तेण समं मे किंपि वत्तवमत्थि, तीए भणियं-को दोसो ?, एहि जेण दंसेमि, तओ पट्ठियाई गहुँ, जाल दाय केत्तियमेत्तमंतरसुवगया चंदलेहा ताव दिट्ठो विजासिद्धो बाहुबद्धरक्खावलओ वियलियनियलवंधणो महालोद वा फरंताहरो पायडियनिडालभिउडिभासुरोत्ति, तं च दद्ण चिंतियमेयाए-अहो कहं रक्खावलयलाभो इमस्थ रकम सस्स?, कहं वा नियडच्छेओ संपत्तो ?, अहो अवितक्कियं केरिसमावडियंति ?, जायभयावि आगारसंवरणं कारण वेग है। समेया समीवसुवगया एयस्स, तेणवि इतिं दद्रुण ईसि पच्छाइयकोवविरागेण संभासिया, जहा महे! स्वविस, तो आसणनिसन्नाए चंदलेहाए पुणो कइयवेण उड्डमवलोइऊण भणियमणेण-अहो कहं पुवपरिचिणो गोलहो । AG-KOBARICARDOSOSS ३९ महा०
SR No.010405
Book TitleMahavira Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size277 MB
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