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________________ 482044 Res ॥१६७॥ तथा-तं चिय महप्पभावं रक्खावलयं इमो य सो समओ । तेणेकेणेव विणा सुन्नं सर्व दिसापडलं ॥ २ ॥ महावीरच० अहवा रक्खावलएवि होज निप्पुन्नयस्स किं मज्झ१। चिंतामणिलाभेऽविहु सीयइ विमुहो विही जस्स ॥३॥ आधारवसेण धुवं गुणोदया न उण जहा तहा होति । सलिलंपि सिप्पिसंपुडपडियं मुत्ताहलं होइ ॥ ४॥ इय एवं भावितो तमेक्कचित्तेण सो निराणंदो । जालंधरमणुपत्तो कमेण अविलंबियगईए ॥५॥ तवासिजणं च पुच्छितो पविट्ठो चंदकताए गिहे, सुन्नप्पायं च तं दगुण भणिया दुवारडिया गेहरक्खिया, १४॥ जहा-भहे! किमेत्य कोऽवि न दीसइ, तीएवि बहिरत्तणेण वयणमसुणमाणीए दंसिया नियसवणा, तेणावि बहिरिति नाऊण जंपियं महया सद्देण, एत्थंतरे समीवगिहटिएण ईसाणचंदविजासिद्धेण सुणिो सो सद्दो, पञ्चभिन्नाओ , तो भणिओ सो-गोभह! इओ इओ एहि, इहाहं निवसामि, गोभद्दोऽवि ससंभमं वयणमेयं निसामिऊण कह विजासिद्धो इव मं वाहरइत्ति जायसको जाव कित्तियपि भूभागमइक्कमइ ताव समक्खं चिय दिट्ठो अणेगनाडीनिविषज- लाडियसरीरो चरणपसारणपि काउमसमत्थो ईसाणचंदो विजासिद्धो, तं च दट्ठण चिंतियमणेण--- किं किंपि कूडमेयं विभीसिया वा मइब्भमो किं वा । दिवीए मोहणं वा होजा छलणप्पगारो वा? ॥ १॥ | अहवा पीढमिमं जोगिणीण सबंपि संभवइ एत्थ । नूणं सकम्मपवणप्पणामिओ जामि निहणमहं ॥ २ ॥ सुरसरियातीरे जइ तइया काऊण धम्मकिचाई । परलोयं साहितोऽम्हि ता धुर्व लट्ठयं होतं ॥३॥ -CCC ७ ॥ 30-9- 240-
SR No.010405
Book TitleMahavira Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size277 MB
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