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________________ वैशाली और कुण्डग्राम। यह लिच्छावा राजाओंको राजधानो और वञ्जियन राज्यसंघके मुख्य स्थान होनेके रूपमें विख्यात है। जैन धर्म और बौद्धधर्मका इससे विशेष सम्पर्क रहा था, यह हम पहिले ही देख आए हैं। तिसपर भी वैशालीमें जैन धर्मको प्रधानता होनेके विषयमें अनेक श्रोतोंसे प्रकाश मिलता है । इसी बातको पुष्ट करते हुए ही सर रमेशचन्द्र दत्तने अपने " प्राचीन भारतवर्षकी सभ्यताके इतिहास में लिखा है कि "वह (भगवान महावीर ) गौतमबुद्धके प्रतिस्पर्धी थे और बौद्ध ग्रंथोंमें उनका नातिपुत्रके नामसे वर्णन किया गया है और वह निग्रन्थों ( वस्त्र रहित लोगों )के मुखिया कहे गए हैं जे लंग कि वैशालीमे अधिकतासे थे ।" भगवान महावीर भी संभवतः इमी राज्यसंघके एक राजाके राजकुमार थे, यह भी हम देख चुके हैं । यहांके अधिपति चेटक आपके मामा थे। इस नगरकी विशालताका अन्दाना कालिदासके इस वाक्यसे भले ही बांधा जासका है: "श्रीविशालमविसालम् । " चीन-यात्री यॉनॉना दैशालीको २० मीलकी लम्बाई-चौड़ाई में बसा बतला गया था। और तीन कोटोका भी उल्लेख कर गया था। उसके कथनके अनुसार निकटके तीन अन्य ग्रामोका भी होना सिद्ध होता है जैसा कि बौद्ध शास्त्रोमे वर्णन है । यही चीन यात्री इस सारे देशको ५००० ली (अनुमागता १६०० मील) की परिधिमे फैला बतलाता है, और वह कहता है कि यह देश बड़ा सरसन था । आम, केले आदि मेवेके वृक्षोसे भरपुर था। मनुष्य ईमानदार, शुभ कायोके प्रेमी, विद्याके पारिखी जौर विश्वासमें कभी कट्टर व कभी उदार थे। वास्तवमें देश अति उत्तम और
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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