SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लिच्छवीय क्षत्री और उनका गण-राज्य । ( १२ ) हिच्छाकीय क्षत्री और उनका गण- राज्य । "वे आर्य हो थे जो कभी अपने लिए जीते न थे। वे स्वार्थ हो मोह की मदिरा कभी पीते न थे । संसारके उपकार हित जब जन्म लेते थे सभी निश्चेष्ट होकर किस तरह वे बैठ सकते थे कभी ?" ५७ उस समय में अर्थात् ईसा पूर्वकी छठवीं शताब्दिमें पूर्वीय भारतमें लिच्छावीय क्षत्रियोकी एक विशाल और वीर जाति थी । ये लोग आर्घ्य क्षत्री थे । उनके रीतिरिवाज, शासनप्रणाली, धर्म आदि बड़े अपूर्व और उत्कृष्ट थे जिनके कारण उनके मध्य ऐसी ऐक्यता थी कि मगधाधिपति अजातशत्रु भी इनपर सहसा आक्रमण न कर सका था, जबतक उसने इनके मध्य अनैक्यका बीज नहीं बुवा दिया था । इनमें जैनधर्मका प्रचार खूब रहा था, जैसे कि अगाडी मालूम होगा । लिच्छावी वशिष्ट गोत्रके इक्ष्वाकवंशीय क्षत्री थे । इनकी उत्पत्ति कहांसे कब हुई, यह अन्धकारमें है, किन्तु जिस समय भगवान महावीर इस संसार में विद्यमान थे और धर्मका प्रचार कर रहे थे उस समय वे एक उच्चवंशीय क्षत्री माने जाते थे । वे अपने उच्चवंशमें जन्म धारण करनेके लिए शिर ऊँचा रखते थे; और पूर्वीय भारतके अन्यान्य उच्चवंशीय क्षत्री उनसे विवाह सम्बन्ध करनेमें अपना बड़ा मान समझते थे । भगवान महावीर शायद इन्हीके गणराज्यके एक राजाके पुत्र थे ।
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy