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________________ भगवान महावीर। पर आकर मुक्तधाममें नहीं पधराने देगी। भले ही वे अपने कृत्योंसे सांसारिक भोगोंमें उत्कृष्टता प्राप्त करलें । और. सर्व सांसारिक आत्माओंको आत्मज्ञानका भान होना मी सहल नहीं है। पूर्वके शुभकृत्यों के प्रभावसे यदि सुयोग्य अवसर (काललब्धि) उन्हें प्राप्त होजाय तो भले ही वे सच्चे मोक्षमार्गपर आकर अपनी आत्माओंका कल्याण कर सकें । सो सर्वसे ऐसे हो जानेकी संभावना अलि दुष्कर है। इसी लिए कभी समय शुभ उन्नतिकी ओर पग बढ़ाता है तो कभी अवनतिके गर्तकी ओर लुडकने लगता है। यह तत्कालीन मनुष्योंके कृत्योंके आधीन है। यदि उनके कृत्य शुभ होगे तो उनकी दशा उत्तम होगी । और यदि सत्य दुप्परिणाममय दुष्ट होगे तो दशा भी अधम होगी । अस्तु, इसी क्रमके अनुसार समाजकी आवश्यकाएं घटती बढती रहती हैं। नये नये विचार उत्पन्न होते रहते हैं। और मनुष्य अपने मनोनुकूल सिद्धांत आदि गढ लेते हैं। पर जितना ही उनमें सत्यान्श होता है, उतना ही उनका आदर और टिकाव होता है। इस युगके आरम्भमे श्री ऋषभदेवने यथार्थ मार्गका रूप जनताको दर्शाया था, पर उसी समय ही स्वयं उनके पात्र (मारीच ) ने अन्य मार्ग अपनी रुचिके अनुसार बनाया था। वस कभी ऐसी समस्या आजाती है कि उसका उत्तर नहीं मिलता. अशांति और असंतोष फैल जाता है. धर्ममें अविश्वास और अंघ श्रद्धा होनानी है । इनको हल करनेके लिए उस समयकी अवस्थानुमार महान आत्मा जन्न धारण करती है, और गनीर सितिको मुलझाकर समानको पुन. सन्मार्गपर ले आते हैं।
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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