SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान महावीर जाते और उनकी उपासना करते ! तो फिर इन वेदमंत्रोंका भाव क्या है नो अग्नि आदिको समर्पित हैं ? यह प्रश्न अगाड़ी आता है। परन्तु इसका उत्तर जैसा कि मि० चम्पतरायने अपने उक्त अन्योंमें दिया है, उससे इन मंत्रोंका भाव साफ प्रकट होजाता है। वास्तवमें यह शक्तियां प्राकृतिक नहीं हैं बल्कि आत्मगतियोंकि रूपान्तर हैं । वैदिक ऋषियोंने काव्यकी अलंकृत भाषामें आत्मशक्तियों के रूपक बांधकर उनका गुणगान किया है जिससे कि उनकी आत्मामें जागृति पैदा हो जाय । और इस प्रकार उसका महत्व सेदेव हृदयपट पर अकित वना रहे। अब निस आत्माकी शक्तियोंको वे इन्द्र, सूर्य्य आदिके रूपक पूजतेथे तव यह आवश्यक है कि वे उसके तत्वसे भिज्ञ रहे हों। वेदमें इन्द्र, सूर्य और अग्नुि यह तीन मुख्य देवता माने गए हैं। इंद्र आत्माको पुद्गलसे मिलकर सांसारिक मोगोमे लिप्त रहने की अवस्थाका द्योतक है। तव सूर्य आत्माको शुद्धात्मस्वरूप केवलज्ञानावस्थामें प्रकट करता है। और अग्नि वह तपकी अग्निहै जिसके द्वारा कर्मवन्धनोकी निर्जरा होकर नवीन कमौका बन्ध होना रुक जाताहै जिससे आत्मा कोसे संसार परिभ्रमणसे छुटकारा पा लेता है। जिन ऋषियोंने आत्माके मिन्न स्वरू-- पोंको इस तरह पहिचाना उन्हें जरूर आत्मा सम्बन्धी गूढ ज्ञान था। और नहांसे उन्हें यह गूढज्ञान प्राप्त हुआ। उन लोगोंका आत्मज्ञान' गुढ़ ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक रहा होगा। अब देखना चाहिए कि यह वैज्ञानिक ज्ञान उस समय किस धर्ममें पाया जासता था। वेदोंमें तो था ही नहीं क्योंकि उनमें तो सिवा गीतोंके और कुछ महत्त्वपूर्ण वस्तु देखने में नहीं आती तब यही मानना पड़ेगा कि यह
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy