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________________ भगवान महावीर। थे। यह हरिकेतुके पुत्र थे। हरिकेतुने बहुतसे जैन चैत्यालय बनवाए थे। और मुनि हो मुक्तको गए थे । नमिप्रभू शिखरजीसे मोक्ष गए । उनका चिन्ह नीलपद्मका था। । । इनके पश्चात् ११ वें चक्रवर्ति राजा नयसेन हुए थे। यह राना वैजय रानी यशोवतीके पुत्र थे । यह मुनि होगए थे। अंतिम १२ वें चक्रवर्ति राजा पद्मगुल्म भगवान नेमनाथ और पार्धनाथके मध्यमें हुए थे । इस प्रकार २३ वें तीर्थकर पार्श्वप्रभूसे पहिले सार्वभौमिक अखंड राज्यके कर्ता १२ चक्रवति होचुके थे। प्रथम तीर्थकर आदिनाथके वृषभ (बेल) का चिन्ह था । और नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामीके क्रमसे शंख, सर्प और सिंहके चिह्न थे। इन चिह्नोंसे साधारणतया तीर्थकरोकी प्रतिमाओंको जाननेका भाव है। परन्तु प्राचीन भारतमें संकेत विद्याका होना प्रमाणित है जो Pictographic वा Hieratic कहलाती थी और मिश्र चीन आदि देशोमें भी प्रचिलित थी। (देखो हिन्दी विश्वकोप भाग प्रथम दृष्ट ६०-६९) और संभवता एक गुप्त माषा का लिपि भी प्रचिलित थी जिसको मि० चम्पतराय जैन, बेरिटरने अपनी 'असहमत-संगम' नामक पुस्तकमें 'पिकोरुत' व्यक्त किया है। और सर्वमतोंके प्राचीन ग्रन्थोंको जसे वेद, वाईबिल आदिको उसी भाषामें लिये प्रमाणित किया है । अस्तु प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथके वेल चिन्हमे भार निकल मक्का है कि उन्होंने सर्व प्रथम धर्मका रूप मममाग था। और वैनका मेकेनात्मकरूपमिक ऐग्यग्ने आनी पुस्तक "द्री परमेनेन्ट हिस्टरी जॉक भारतवर्ष" एट २१३ पर प्रदरियादिलो भान धनको प्रस्ट भनेका है। ऐसे
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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