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________________ २४ भगवान महावीर । 1 इससे प्रकट है कि वेदोंके रचियता कृष्णके समकालीन तीर्थकर भगवान नेमिनाथको भूले नहीं थे और यज्ञाहुतिके समय उन्होने उनका भी स्मरण किया था । इस प्रकार यदि यह विषय आधुनिक इतिहासवेत्ताओं को स्वीकृत हो, जिसके स्वीकृत न होनेमें कोई विशेष कारण प्रगट नहीं होते तो जैनधर्मकी ऐतिहासिक प्राचीनता श्री पार्श्वनाथसे भी अगाडी बढ़ जाती है। और इसी प्रकार यदि अन्य मध्यवर्ती जैन तीर्थकरोके विषयमें अध्ययन किया जाय तो उनके विषयमें भी बहुत कुछ स्वाधीन रूपमें प्रकट होना संभव है। वैसे तो उनका वर्णन जैन शास्त्रोंमें वर्णित है । और सामान्य में अगाड़ी दिया जायगा । 1 हम इस प्रकार देखते हैं कि हिन्दुओके श्री कृष्णके साथ जैनियोंक २२वें तीर्थकर भगवान नेमिनाथका सम्पर्क होनेके कारण 'और उनका जन्म द्वारिकामें होने व तप व निर्वाण आदि कृष्णके राजगृह द्वारिका धामके अति समीप होनेके कारण कहीं कहीं जनसाधारणमें यह भ्रम फैल जाना उपयुक्त है कि जैनी बाबा नेमिनाथके उपासक हैं । और जैनधर्मके प्रणेता वही थे । यद्यपि चास्तवर्मे जैनधर्मकी वर्तमान युगकालीन उत्पत्तिका मुकट हम पहिले ही यथार्थरत्या श्री ऋषभदेवजीके बांध चुके हैं। अस्तु, अब आइए २३ वें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथनीके सम्बन्धमें भी महावीर भगवान तक पहुंचने के लिए कुछ विचार करलें ।.
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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