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________________ M तीर्थकर कौन हैं ? . ११ (8) तीर्थकर कौन है ? * For if the dead rise not, then is Christ not risen." -St. Paul (I Cor. XV. 16). बाइविलमें पोलस रसूलके वाक्यसे विदित है कि .. " यदि मुर्दै जी नहीं उठते तो ईसा भी नहीं जी उठा है।" आत्माएं सदैव आत्मिक ( रूहानी ) मृतावस्थासे जी उठती रही: हैं।" (अर्थात् अज्ञानावस्थासे निकलकर अपने आत्मज्ञानको प्राप्त करती रही हैं ।) और निर्वाण प्राप्त करती रही हैं। परन्तु तीर्थंकर प्रत्येक कालमें केवल २४ होते हैं । वह समस्त जीवित प्राणियोंमें सर्वोत्कृष्ट होते हैं और अपने पिछले जन्म या जन्मोंमें विविध शुभ गुणोंमें अपनेको पूर्ण करनेके कारण सबसे उत्तम और उत्कृष्ट । पद पाते हैं। तीर्थकर वह मनुष्य हैं जो अपने विषयमें किताब मुकाशफाके शब्दोमें यह कह सके हैं: " मै वह हूं जो मर गया था और देख मैं अनन्तकाल तक. . जीवित रहूंगा। और नर्क व मृत्युकी कुञ्जियां मेरे आधीन हैं।" (भ० १ ० १८ ।) तीर्थकरका पद केवलज्ञान प्राप्त होनेपर जो आत्मा परसे ज्ञानके . गेकनेवाले परदे (नानावण) के हटनेका फल है, प्राप्त होता है। तीर्थकर भूख, प्यास, राग, द्वेष, जन्म, जरा, मरण, रोग, शोक, भय. आवर्य, निन्दा, थकावट, पसीना, घमण्ड, मोह, अरति, और चिन्तासे रहित होते हैं। स्वर्गलोकके देव और मनुष्य
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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