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________________ 'भगवान महावीर। फैलाई थीं। वहां अब न कोई प्रभू महावीरका नाम जानता है और न उनके शासनको ! उसी पवित्र शासनकी यह शोचनीय दशा है । वह गरिमा जाने कहाँ पलायमान होगई। न जाने यह सब कहां गया ! परन्तु यह सब वस्तुस्वभावत् है । वीर शासनके जैन ग्रन्थोंमें इसी लिए संसारमें एक कालचक्रका नियम बताया। है जो निन्न लिखे अनुसार हैं। इसी कारण महावीर भगवानके चरित्रके पठनपाठनकी आवश्यक्ता है। उससे वस्तु स्वभावका ' हमको ज्ञान होगा। वैसे तो महान् यत्सालोके जीवन पड़े ही, नाते है क्योकि " महाजनाः येन, ताः सः पन्थः " और उनका अनुकरण करना सबने जमाष्टं है। "सा रम्या नगरी महान्स पनि मामन्तचक्र चतता पावे तस्य च साविदग्ध परिषत ताश्चन्द्र घिम्बानना । उन्मत्तः स च राजपुत्र निवहस्ते बन्दिनस्ता कथाः। सर्व यस्य वशादगास्मृतिपथं कालाय तस्मै नमः" जो कालचक्र अपने प्रभावसे तीर्थकर जैसी महान आत्माओके तीर्य मार्गको वंचित नही रख सत्ता उसका वर्णन करनेके पहिले उपर्युक्त श्लोकके अनुसार उसका अभिवादन करलें क्योंकि यह इसीकी महिमा है जो धर्मके ह्रास होनेपर श्री तीर्थकर भगवान उसको पुनः प्रकट करते हैं। अस्तु “ वह रम्य नगरी. वे महान् नरपति, वे योद्धावह चक्र और वह उनकी पार्यवर्ती
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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