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________________ २७४ भगवान महावीर पारस्परिक विरोधी सिद्धान्त बिलकुल नहीं पाये जाते ।।, दूसरे को दर्शना हैं; उनमें भिन्न-२ आचार्योके. कथनों में बहुत विरोधःपाया जाता है, जिसका परिहार करना, कहीं२.असम्भव है। इसका कारण यह है कि उन दर्शनों के स्थापक कोई; सर्वज्ञ नहीं थे। इससे उनमें बहुतसी अपूर्णतायें रह गई थीं, जिनको पीछेके आचार्योंने अपने मतके अनुसार पुरी करनेका प्रयत्न किया। इसीसे उनसें मरमान विरोधी बातें आगई हैं, परन्तु जैन दार्शनिक ग्रन्थोंमें ऐसे विरोध कहीं नहीं, पाये जाते । जितप आचार्योने जैन दर्शना पर अपनी बहुमूल्यः लेखनी चलाई है वहां उनके कथनों में पूरा सामान है और तद्विषयक प्राचीनतम ग्रन्थोंसे लगाकर नवीन अन्योतको कही भी किसी समयके अन्योंमें नये जोड तोड हेर फेर, वा घटाकी नहीं पाई जाती। जैन दर्शनका जो रूप आनसे दाई हजार वर्ष पूर्व था, आज भी वैसाही बना है। इसका कारण यही है कि उसमें किसी प्रकारकी अपूर्णतायें नहीं थीं समस्त वस्तु खरूपका.. उसमें सप्रमाणिक विवेचन था औरा. इसी लिये आचार्योंकी उसमें जोड़ा तोड़ी करनेके लिये न तो न स्थानमा औरान आवश्यक्ता थी। यह तभी हो सका है जब, उस-दर्शनका प्रतिपादन करनेवालेको समस्त,वस्तु स्वरूपका पूर्ण ज्ञान हो। अतः जैन तीर्थयार जिन्होंने जैन दर्शनका ऐसा पूर्ण और विशद विवेचन किया.अवश्य सर्वज्ञारहे हैं। केवल जैन ग्रन्थों में ही नहीं, चौडोंके प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथोंमें भी महावीर स्वामीकी सर्वज्ञता प्रमाण पाये जाते हैं। ये प्रमाण अन्य धर्मावलम्बियों के होनेसे विशेष महत्त्वके हैं। और
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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