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________________ , भगवान महावीर और महात्मा गांधी। २७ कदापि ठीक नहीं कहा जासका ।...........मैं आप सब लोगोंसे विनती करता हूं कि आप महावीरस्वामीके उपदेशोंको पहिचानें, उनपर विचार करें, और उनके अनुसार आचरण करें। मेरे इस कथनका कहीं आप उल्टा अर्थ नहीं करने लगना । महावीरस्वामी: क्षत्रिय थे और उन्होंने जिस अहिसा धर्मका प्रतिपादन किया है तथा अपने चरित्रके द्वारा जिस अहिसा और करुणाके दृष्टान्त संसारके सामने खड़े किए हैं, उस अहिंसा धर्म और प्रेमधर्मको समझकर जिस समय आप आचारसे लायेंगे उसी समय समझा जायगा कि आप लोगोंने भगवान महावीरकी वास्तविक जयन्ती मनाई है।" (जैनहितैषीसे) __इसी संबंधमें हम कविसम्राट् डॉ. रवीन्द्रनाथ ठाकुरके भी उद्दार पाठकोंके समक्ष उपस्थित किए देते हैं। कविजी कहते हैं कि "श्री महावीरस्वामीने गंभीर नादसे ऐसा मोक्षका संदेशा भारतवर्षमें फैलाया कि धर्ममात्र सामाजिक रुढ़ि नहीं किन्तु वास्तविक सत्य है । मोक्ष सांप्रदायिक वाह्य क्रियाकाण्ड पालनेसे प्राप्त नहीं होसका किन्तु इस सत्य धर्मके खरूपमें आश्रय लेनेसे प्राप्त होता है। तथा धर्ममें मनुष्य और मनुष्यका भेद स्थाई नहीं रह सका । कहते हुए आश्चर्य होता है कि महावीरनीकी इस शिक्षाने समाजके हृदयमें बैठी हुई भेद-भावनाको बहुत शीव नष्ट कर दिया और सारे देशको अपने वश कर लिया।" आशा है उपर्युक्त उदारोंसे पाठक लाभ उठाएंगे। इनलम् ।
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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