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________________ भगवान महावीर। .. प्रगट कर दी । जतला दिया कि किसी भी मतके मन्तव्य अन्यथा नहीं हो सके, यद्यपि अपेक्षाकृत ही यह संभव है। उदाहरण रूपमें आस्तिक कहता है परमात्मा है और नास्तिक कहता है कि परमात्मा नहीं हैं । प्रगटरूपमें अवश्य ही दोनोंमें भेद है-विरोध है । परन्तु भगवानकी वाणी-सर्वज्ञ वक्तव्य इस विरोधको दूर करता है । वहां बतलाया गया है कि दोनोंका कहना ठीक है। परमात्मा है भी आर नहीं भी । नयविवक्षाका भेद है । स्याद्वाद सिद्धान्त आपसी विरोधको हटाने के लिये अमोघ अस्त्र है, और इसका निरूपण फिरसे भगवान महावीरने अपने दिव्योपदेशसे प्रगट किया था। इस सिद्धान्तका महत्व नैन शास्त्रों के अध्ययनसे प्रगट होसता है। इसी सिद्धांतको लक्ष्य करके सम्राट अशोकने भी अपनी एक गिरिलिपिमें इस बातका इस प्रकार उपदेश दिया कि___"भिन्न ९ पन्थोमें भिन्न २ प्रकारके पुण्य समझे जाते हैं, परन्तु उन सबका एक ही आधार है और वह आधार सुगीलता और सम्भापणमें शांतिका होना है। इस कारण किसीको अपने 'पन्थकी प्रशंसा और दूसरों के पन्यकी निन्दा नहीं करनी चाहिए। किसीको यह नही चाहिए कि दूसरोंको विना कारण हल्ला सगझें परन्तु यह चाहिए कि उनका सब अवसरों पर उचित सत्कार करें। इस प्रकार यल करनेसे मनुष्य दूसरोकी सेवा करते हुए भी अपने पन्यकी उन्नतिकर सके हैं। इसके विरुद्ध यत्न करनेगे मनुष्य अपने पन्यकी मेवा नहीं करता और दूसरोंकि साथ भी बुरा व्यवहार करता है। तथापि जो कोई अपने पन्य भक्ति रखनके पारण अन्यकी निन्दा करता है, वह अपने पन्यमें केवल कुठार मारताहा" (देको भारतको प्राचीन मानिस Ye Rimi
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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