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________________ वीर दर्शन । ३ था । उन्होंने कहा था जैसा कि विदित हैं कि:-" इस जगतमें किसी एक आत्माको यह ज्ञान नहीं होता है कि ( मैं कौनसी दिशासे यहांपर आया हॅू ; अर्थात् ) जैसे कि पूर्व दिशासे आया हूं या दक्षिण दिशामेंसे आया हूं; पश्चिम दिशामेंसे आया हूं; या उत्तर दिशामेंसे आया हूं; उई दिशामेसे आया हूं; या अधोदिशामेंसे आया हूं (वैसे ही ) अन्य किसी दिशा या विदिशामेंसे आया हूं । ( इसी तरह ) किसी एकको यह भी नही. ज्ञात होता कि मेरा आत्मा पुर्नजन्मवाला है अथवा नही है ? मैं कौन हूं ? यहाँसे मरकर मैं परजन्म में कौन होऊंगा ?" “ जो पुनः (कोई एक जीवात्मा) अपनी सन्मतिसे या दूसरेके कथनसे, अथवा किसी अन्य तीसरेके पाससे यह जान लेता है कि मैं अमुक दिशामेंसे आया हूं, अर्थात् जैसे कि मैं पूर्व दिशामेंसे आया हूं । यावत् अन्य दिशा विदिशामेंसे आया हूं । (वैसे ही यह भी जान ले कि -). मेरा आत्मा पुनर्जन्मवाला है । जो इन दिशा विदिशाओंमेंसे आता जाता है । ( अर्थात् ऊपर बतलाई हुई ) सर्व दिशा - विदिशाओं मेंसे आता जाता है वही मैं हूं। (भगवान कहते हैं ऐसा जो ज्ञाता है) वह आत्मवादी ( आत्माको समझनेवाला), लोकवादी ( जगतको जाननेवाला ) कर्मबादी (कर्मके रहस्यको माननेवाला) और क्रियावादी (कर्तव्यको करनेवाला ) कहलाता है । 32 विनादित्य संशोधक १-१ ज्ञात पुत्र निर्व्रन्य भगवान महावीरका अपूर्व उपदेश व्यानहारिक और पारमार्थिक दोनों दृष्टियोंकी अपेक्षा वस्तुस्वरूपम
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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