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________________ जीवनसे प्रति प्रगट शिक्षाएँ। १९ जीवन का पट शिक्षा _ और उपसंहार " सन्त्येव कौतुक शतानि नगत्सु किंतु, विस्माकं तदलमेतदिह वयं नः। पीत्त्वाऽमृतं यदि वमन्ति विसृष्ठ पुण्याः, से प्राप्य संयमनिधि यदि च त्यजन्ति ॥" -आत्मानुशासन। श्रीमान् गुणभद्राचार्य उक्त श्लोकमें कहते हैं कि " जगमें आश्चर्यकारी बहुतसी बातें हैं; व सदा होती रहती हैं, परन्तु हम उन्हें देखकर भी आश्चर्य नहीं मानते और असली आश्चर्य उनमें है ही नहीं। वस्तुओंका जो परिवर्तन कारण पाकर होनेवाला है, बह होगा ही। उसमें आश्चर्य किस वातका ? हाँ! ये दो बातें हमको आश्चर्ययुक्त जान पड़ती हैं। कौनसी ? एक तो यह कि अति दुर्लभ अमृतको पीकर उसे उगल देना; दूसरी यह कि संयमकी निधि पाकर उसे छोड़ देना । जो ऐसा करते हैं वे भाग्यहीन समझना चाहिए।" __ मनुष्य जन्म एक आर्दश जन्म है, यदि उसका सदुपयोग किया जाय। इसीसे मनुष्य साधारणतया जीवित प्राणियोंमें सर्वोत्कष्ट माना गया है । 'अमुलमखलूकात' बताया गया है। Noblest Creature in the world जतलाया गया है।
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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