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________________ 4 . . भगवान महावीर । । थे। राज्यप्रणालीका ढंग वर्तमानकी सभ्य गर्वन्मेन्टों जैसा था । म्यून्सिपल कारपोरेशन' आदि प्रजासत्तात्मक संस्थाऐं थी। पुलिस भी थी । प्रजाके कष्टोंकी जाँच रखने के लिए 'गुप्तचर विभाग भी था। विशाल सेना भी थी जिसके उत्साहसे आपने समय भारतपर आधिपत्य जमा लिया था। 'शिल्प, चित्रकारी आदि विद्याओं और कलाओंकी भी खूब उन्नति थी। पाटलिपुत्र (पटना) नहोपर कि इनकी राजधानी थी, की खुदाई में जो सुन्दर गृह आदि निकले हैं, उनसे उस समयकी कारीगरीको अन्दाना लगाया जा सका है। चन्द्रगुप्तका बाहुबल इतना बढ़ा चढ़ा था कि प्रख्यातू इन्डोग्रीक राना सेलूकसको इनसे संधि करने पड़ी थी। प्राचीन भारतीय सेनामें जलसेनाका कही उल्लेख नहीं मिलता है। परन्तु चंद्रगुप्त मौर्यके. राज्यकी ओरसे एक जलसेना भी रहती थी जिसका प्रबन्ध जलसैना विभाग किया करता था। मेगस्थनीज और चाणिय अर्थशास्त्र इस बातकी पुष्टि करते हैं । अस्तुं, चंद्रगुप्त मौर्यका राज्यकाल एक आदर्श राज्य था। ऐसे आदर्श सम्राटका राज्यधर्म भी आदर्श था । चन्द्रगुप्त मौर्य जैन धर्मानुयायी थे । मि० विन्सेन्ट स्मिथके निझवाक्य' इस बातको साफ व्यक्त करते हैं । यद्यपि इसके उपरान्त प्रकट प्रमाणों द्वारा प्रकतन विमर्श विचक्षण रायबहादुर आर० नरसिंहाचर एम० ए० एम० आर० ए एस ने अंग्रेजी जैनगनटके भाग १८ अंक ८-९-१०-११-१२ में पूर्णरूपेणं चन्द्रगुप्त मौर्यको जैन प्रकट किया है। मि. स्मिथ लिखते हैं: "चंद्रगुप्त मौर्य के अपूर्व राज्यका अंत जिस प्रकार हुआ
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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