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________________ वीर संघका प्रभाष । २४७ खस्तिकासे प्रकट जैनभाव हम पहिले दर्शाचुके हैं। गोलाकारके मध्यविन्दुसे भाव संसारी आत्मासे होगा। इस प्रकार हमको इन चिन्होंसे यह भाव मिल जाता है कि वृषभ चिन्हकी प्रतिबिम्ब भगवान ऋषभदेवकी है। इसलिए ऋषभदेव (बैल) जो केवलज्ञानके धारक (सूर्य) थे वह बतला चुके हैं कि आत्मा और पुद्गलका मेल है, जिसके कारण जीव च गतिमें भ्रमण कररहा है (खस्तिका) और लोक (गोलाकार ) के मध्य भ्रमण करनेवाले जीवकी आत्मा उसमें मौजूद है (बिन्दु)। उल्टी तरफके अप्रकट चिन्हों द्वारा इस अवस्थासे छूटनेका उपाय बतलानेवाली घटनाका उल्लेख किया गया होगा। अस्तु, इन विन्होंका भगवान ऋषभदेवके जीवनसे इस प्रकार साक्षमस्य बैठ जाना हमको विश्वास दिलाता है कि भगवान ऋषभदेवके स्मारकमे यह सिक्का ईसासे पूर्व ६००-६००में ढाला गया था जब जैनधर्मका प्रभाव भगवान महावीरके तीर्थमें खूब फैल रहा था। नं. ५ के सिक्केके चिन्होंका सम्बन्ध भगवान महावीरसे है। उसमें एक तरफ हाथी और तीन दरवाजोंका चैत्य (Threearched ) है । हाथी भगवानकी माताको खप्नमे सर्व प्रथम दिखाई दिया था, जिसका भाव था कि तीथकरका जन्म होनेवाला है, जो संयुक्त रत्नत्रय मार्ग ( Three-arched Chaitya) को प्रकट करेंगे। दक्षिणका पाण्ड्य राजवंश जैनधर्मानुयायी था। उनके सिकोपर भी हाथीका चिन्ह है। (Sss The Coins of India P.62) इससे यही प्रकट है कि हाथीका चिह्न जैनधर्मसे संबंध रखता है। इस सिक्केके दूसरी ओर ताकमें सिह, स्वस्तिका
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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