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________________ દરર भगवान महावीर। शरण ली थी। सत्य ज्ञानकी पिपासी आत्माओंने सर्व वर्णामसे आकर भगवानकी सुधागिरा और भक्तिरसका पान करके अपनी तृप्ति की थी। क्षत्री, ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र, आर्य, अनार्य्य, पशु पक्षी, देवादि सबोंने सच्चे सुखका भान पलिया था। । । ___ 'यही कारण प्रतीत होता है कि कुछ विद्वान जैनधर्मके... अनुयायियोंको " हिन्दु डिसेंटर" अर्थात् हिन्दू धर्मच्युत मिन्न । मतानुयायी कहते हैं और जैनधर्मको वर्गव्यवस्थाका लोप करनेवाला प्रगट करते हैं परन्तु यह बिल्कुल मिथ्या है। हाँ! यह अवश्य है कि भगवान महावीरके समयमें जैनियोंने नीच वर्णोके प्रति दुर्व्यवहारको हटा दिया था, जैसा कि ब्राह्मणोंकी प्रधानतामें उनपर किया जाता था; और उनका मनुष्योचित सम्मान किया था। वर्णव्यवस्थाकी रक्षाका ध्यान उनको अवश्य था, जिसके कारण यद्यपि प्रत्येक वर्ण और नातिके मनुष्योंको जैनधर्ममें आनेका मार्ग खुला हुआ था, परन्तु नीच जातियोंके मनुष्योंमें मुनिधर्म जैसे उच्च आदर्शमय जीवनको धारण करनेकी योग्यता न होनेके कारण वे मुनि नहीं होते थे।'(CE: portion concerning it on page 8 of the "South Indian Jainism" by M.S. Ramaswami Aypangar. M. A.) . ___अस्तु, यह प्रगट है कि वर्णव्यवस्थाकी रक्षा करते हुए जैन संघमें सव ही प्रकारके मनुष्योने आश्रय पाया था। __• यूनानदेशवासी जो भारतवर्षके सीमाप्रान्त पर बस गए थे, वह मी जैनधर्मके परम भक्त हुए थे। मि० विमलचरण लॉ० एम० ए. अपनी पुस्तक The Historical Gleaningsके प्रष्ट ७८
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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