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________________ २३६ भगवान महावीर । → होता है । वे मुनिगण जो पीछे रह गए थे, दुष्कालंकें " कष्टक कारण 'अपने नग्न व्रतको त्यागनेको बाध्य हुए थे और श्वेत वस्त्रोंको धारण करने लगे थे। दूसरी ओर, अपनी धर्मवत्सलता के कारण जो सुनिगण नग्न आचारं नियमका त्यागन नही करके विदेश विहार करगए थे, उन्होने यह नियम सम्पूर्ण संघके लिए अनि- ' वार्य्य रक्खा। सुकाल और सुखशांतिके पुनरागमन पर जब वे , मुनिगण, जो विहार कर गए थे, लौटकर उस देशमें आए तबतक 1 'वह आचारविभिन्नता इस कालान्तर में पूर्ण स्थापित हो गई थी,, जिससे कि उसकी उपेक्षा नही की जा सक्ती थी । विहारसे लौटे हुए सुनिसंप्रदायने उन पतित (उनके निकट ) मुनियोंसे समय-, नेका व्यवहार नहीं रक्खा जो पीछे रह गए थे। इस प्रकार दिगम्बर और श्वेताम्बर संप्रदायोफै विभागकी जड़ पड़गई थी ।" प्रख्यात योरुपीय विद्वानके उक्त कथनसे श्वेतांवर संघकी उत्पत्ति विषयक दिगंबर जैन कथानककी सत्यता झलक जाती है । ' / श्वेतांवर संघकी उत्पत्ति महावीर भगवान के निर्वाण लाभके दीर्घ कालोपरान्त हुई थी, एवं दिगंबर संप्रदाय सनातन है यह प्रमाणित हो जाता है | + + इस बातके प्रकट करने से मात्र हमारा भाव वास्तविक ऐतिहासि कताको प्रत्यक्षमें लाने का है। इसलिए साम्प्रदायिक विद्वेषका वर्धक कारण यह न समझा जाय, यह अभीष्टं है। ऐतिहासिक दृष्टिकोनही पुवर्क में सर्वत्र अन्य धम्म वा मतोंकी समालोचना की गई है। महात्मा बुद्धका वर्णन भी उसी दृष्टिसे है । अतएव हम आशा करते हैं कि हमारे पाठक भगवान 'चरित्र 'विश्वप्रम' और 'सत्य' का पाठ ही ग्रहण करेंगे ।
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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