SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ NA श्वेताम्वरकी उत्पति। Encyolopodia of Religion and Ethics, Vol. VII, P. P 465 & 466. and South Indian Jainism. Pt. I P. 25). इसीप्रकारका एक संशयात्मक मत 'जनहितैषी' भाग १३ पष्ट २६९-२६६ पर विशेष गवेषणाके साथ प्रतिपादित किया गया है, और निर्णय स्वरूपमें कहा गया है कि " श्वेताम्बर सम्प्रदायके आगम या सूत्र ग्रन्थ वीर नि० सं० ९८० (विक्रम सं० ५१०) के लगभग वलभीपुरमे देवर्धिगणि क्षमाश्रमणकी अध्यक्षतामें संगृहीत होकर लिखे गये हैं, और नितने दिगम्बर एवं श्वेताम्बर ग्रन्थ उपलब्ध हैं। और जो निश्चय पूर्वक साम्प्रदायिक कहे जा सके हैं, वे प्रायः इस समयसे बहुत पहिलेके नहीं हैं। अतएव यदि यह मान लिया जाय कि विक्रम सं० ४१०३ सौ पचास वर्ष पहिले ही ये दोनों मतभेद सुनिश्चित और सुनियमित हुए होंगे, तो हमारी सम्पझमें असंगत न होगा। इसके पहिले भी भेद रहा होगा परन्तु वह स्पष्ट और सुश्रृंखलित न हुआ होगा। खेतांबर जिन बातोको मानते होगे उनके लिए प्रमाण मांगे जाते होगे, और तब उन्हें आगमोंको साधुओंकी अरप्ट यादगारीपरसे सग्रह करके 'लिपिबद्ध करनेकी आवश्यका प्रतीत हुई होगी। इधर उक्त संग्रहमें सुखलता प्रौढता आदिकी कमी, पूर्वापर विरोध और अपने विचारोंसे विरुद्ध कथन पाकर दिगंवरोंने उनको माननेसे इन्कार कर दिया होगा, अपने सिद्धान्तोंको खतंत्ररूपसे लिपिवद्ध करना निश्चित किया होगा।" परन्तु यह दोनों ही मत प्रमाणभूत यथार्थ निश्चय नहीं माने जा
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy