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________________ ૨૦ जिसमे श्वेताम्बर मत बिल्कुल पृथक् स्थापित होगया था । रत्ननंदि आचार्यको यह ऐतिहासिक गणनाका फर्क नजर पड़ा होगा तब उन्होने उस प्रारंभिक समय में जितना मतभेद पड़ा था उसका उल्लेख भी , कर दिया । इसलिए दि० ग्रन्थोंका उपर्युक्त वर्णन अधिकांशमें यथार्थ प्रगट होता है । किन्तु श्वेतांबर सम्प्रदायकी ओरसे भी एक ऐसा ही समय दिगम्बरोंकी उत्पत्तिके विषय में कहा जाता है और उसके प्रमाणमे यह गाथा दी जाती है:--. । 'भगवान' महावीर ।' 1 " f छव्वास सहस्सेहिं नवुत्तरेहि सिद्धिं गयस्स वीरस्स । तो वोडियाण विट्टी रहवीरपुरे समुप्पन्ना !! परंतु उनका इस प्रकार श्वेतांबर सम्प्रदायसे दिगंबरोंकी उत्पत्ति बतलाना नितान्त मिथ्या है, क्योकि हम पहिले देख चुके हैं कि जैनधर्मके आदि प्रवर्तक भगवान ऋषभदेवसे लेकर अंतिम भगवान महावीरके उपरान्त तक जैन साधु नग्न दिगम्बर वेपमे (निग्गन्थ) रहा करते थे । तिसपर श्वेतांवरियोका उक्त प्रमाणभूत गाथा किसी दिगंवर ग्रन्थके एक गायेका रूपान्तर प्रतीत होता है, क्योंकि स्वयं श्वेताम्वराचार्य जिनेश्वरसूरिने अपने 'प्रभा-लक्षण ' नामक तर्कग्रन्थके अन्त मे श्वेताम्बरोंको आधुनिक बतानेवाले दिगम्बरोफी ओरसे उपस्थित की जानेवाली इस गाथाका उल्लेख किया है: । 1 छव्वास सएहि न उत्सरैहिं तज्ञ्या सिद्धि गयमा वीरस्स । कंवलियाणं दिट्टी बलही पुरिए समुप्पण्णा ॥ यह गाथा श्वेतांवरोकी प्रमाणभूत उक्त गाथाले बिल्कुल मिलती जुलती है। इसलिए यह प्रकट होता है कि श्वेता रोने 1
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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