SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवानका मोक्षलाभ। १८७ करती है और सिद्धावस्थाके जीवनका अनुभव प्रारम्भ करती है। इस सिद्ध जीवनमें आत्मा पवित्र और विशुद्ध होती है, परमसुखका भोग करती है और अविछिन्न शांति एवं अनन्त वीर्यका आनन्द लेती है। इस दशाका वर्णन करना बचनअगोचर है, इसका खरूप समाधिस्थित आत्मा ही समझ सक्ती है। ___ संसारमें समस्त जीवित प्राणियोके जीवनका एक दिन अन्त होता है, परन्तु वह अन्त एक दूसरे जीवनको प्रारंभ कर देता है। भगवान महावीरके मानुषिक भौतिक जीवनका दिव्य अन्त 'फिर संसारमें न आनेके लिए ' हुआ था, इसलिए वह उत्कृष्ट था। उससे जन्ममरणके दुःख-पाश कट गए थे, जिनके कारण जीवित प्राणी संसारमें चक्कर लगाते हैं। इसी कारण कहा जाता है भगवानने मोक्षलाभ किया। यह दिव्य अवसर ईसासे पूर्व ५२७ वें वर्षमें भगवान महावीरको प्राप्त हुआ था। भगवान गणघरादिके साथ विहार करते हुए दीक्षा ग्रहण करनेके करीब तीस वर्ष उपरांत, समस्त प्राणियोके हितका उपदेश देकर पावापुरके फूले हुए वृक्षोंकी श्री शोभासे रमणीय 'मनोहर' नामक उपवनमें आकर प्राप्त हुए थे। पावापुरी संभवतः राजा हस्तिपालकी राजधानी थी, जो (राजा) भगवान महावीरके परमभक्त थे। ___ पावामें राजा हरितपाल भगवान महावीरके शुभागमनकी बहुत दिनोसे प्रतीक्षा कर रहे थे। जब उन्होने भगवानका आगमन सुना तो समस्त पुरवासियोंको आनन्द मनानेकी आज्ञा दे दी निसके कारण मार्ग साफ कर दिए गए थेगलियोमें गुलाबजल
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy