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________________ मक्खाली गोशाल और पूरण काश्यप। १८३ साहश्य जैनियोके सल्लेखनावृत्तसे है, परन्तु आजीवकोंके निकट वह केवल आत्महत्या (Suicide ) भावमें है-उससे आत्मानुभवका कुछ संबंध प्रतीत नहीं होता | आजीविकोंका विश्वास था कि जो कोई इस नियमका पालन करता है, उसके निकट छै महीनेकी अंतिम रात्रिको पुनभद और माणिभद्द देवता प्रकट होते हैं और वे उसके अवयवोंको अपने ठंडे और गीले हाथोंमें ले लेते हैं। यदि अवयव उनके इस ऋत्यसे उल्लसित होगए तो वे सोका कार्य करते हैं । अन्यथा उनके शरीरसे एक गुप्त अग्नि निकलती है जो अवयवोंको भष्मकर डालती है । बात यह है कि यहाँपर आत्मानुभव द्वारा समाधिमरण करके आत्मशुद्धि करनेकी ओर ध्यान नहीं है, बल्कि वही मंत्रतंत्रकी बात आगई है कि देवता प्रगट होंगे। , गोशालकी मृत्युके साथ २ आजीवक सम्प्रदायका कार्यक्षेत्र श्रावस्तीसे हटकर विन्ध्यापर्वतके पाण्डुदेशमें चला गया था। श्रावस्तीमें वह गोशालके समयसे ही हासको प्राप्त हो चलाथा। पाण्डके राजा महापद्म अथवा देवसेन वा विमलवाहनने आजीवक सम्प्रदायको आश्रय दिया था और निर्ग्रन्थ सम्प्रदायको कष्ट दिए थे। वहांसे दक्षिणको बढ़ते २ आजीवक सम्प्रदाय १४ वी शताब्दिमें लुप्त होगया। इसके बहुतसे अनुयायी जैन हो गए थे। जब भगवान महावीरका दिव्योपदेश हो रहा था तब उसका प्रभाव आजीवकोके ऊपर विशेष पड़ा था और वे आवस्तीसे हट चले थे। उनका मंत्रादिमें विश्वास कम हो चला था। अस्तु, मक्खाली गोशालके मांत्रिक नकलीतीर्थकरत्वका वर्णन देखकर हम अब पुरण कश्यपका भी दिग्दर्शन पाठकोको कराये देते हैं।
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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