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________________ मrखाली गोशाल और पूरण काश्यप । १८१ 1 गोशालकी मृत्युके कुछ पहिले निम्नलिखित है दीक्षाचर उनके पास पहुंचे थे, साण, कलन्दु, कणियार, अत्येद, अग्निवेशायण और अज्जण गोमायपुत्र । इन्होंने गोशालका मत स्वीकार किया था। उन्होंने अपनी बुद्धिके अनुसार पूर्वोमें गर्भित आठ महानिमित्तों और मार्गोमेंसे कुछ वाक्य उद्धृत किए । गोशालने स्वयं महानिमित्तोंसे अपने लिए छैः विषय चुने थे, मुक्ति, बन्धन, सुख, दुख, जीवन और मरण । इन्हीं दीक्षाचरोंने बादमें आजीविक सम्प्रदायको जीवित रक्खा था। गोशालका महानिमित्तों से अपने सिद्धान्तोंको चुनना व्यक्त करता है कि वह ज्योतिष और मंत्रवादका आचार्य था । उसके उपदेशमें इन्हीं की बहुतायत रहती थी ऐसा प्रगट होता है क्योंकि उसने आनन्दसे कहा था कि वह नष्ट करनेके मंत्रको जानता है । और उसने दो जैन मुनियोंको भी मंत्रविद्यासे नष्ट किया था । (See The Ajivakas by Dr. Barua M. A. D. Litt P. बौद्धग्रन्थ कथाचरितसागर की तरङ्ग १३, नं० ६८के जातक 28.) कथानकमें साफ लिखा है कि बुद्धके जीवनकालसे ही आजीवकोके निकट ज्योतिषबाद जीविका उपार्जन करनेका एक मार्ग होगया था। ( See Ibid P. 68. ) उसके आठ महानिमित्तों में सिवाय ज्योतिष और मंत्र विद्याके और कुछ न था और दो मार्गो में संभवतः संगीत शास्त्र अथवा आजीविक सम्प्रदायके चारित्र नियमोंका उल्लेख था । गोशालकी मृत्युके समय आजीविक सम्प्रदायमें कुछ नियम और बढ़ाए गए थे, अर्थात् आठ अंतिम नियम ( अनुचरमायं = •
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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