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________________ मrखाली गौशाल और पूरण काश्यप । GS " प्रचार भगवानकी केवलज्ञानोत्पत्तिके पहिले ही किया था ऐसा प्रतीत होता है और यही कारण था कि उनके अनुयायी एक बड़ी संख्या में होगए थे, “किन्तु जब प्रभु महावीरका विहार और प्रचार हुआ तब लोगोंको यथार्थ तीर्थङ्करका पता चलगया, क्योंकिं भगवान महावीरका उपदेश बिल्कुल वैज्ञानिक रीत्या वस्तुस्थिति रूपमें होता था, जैसाकि आज भी प्रकट है। उपर्युक्त व्याख्याको पढ़ते हुए यह भी ध्यान में रखनेकी बात है कि सिवाय जैनधर्मके अन्यर्धमोंमें आदि रूपसे तीर्थकरोंको नहीं माना गया है। भगवान महावीरंसे पूर्वके इन वास्तविक तीर्थकरोंके अस्तित्वकी पुष्टि हिन्दूओंकि वेद भी करते हैं जब 'कि इन अन्य नाममात्रके तीर्थका उल्लेख उन वेदोंमें नहीं है । इस नाममात्र के तीर्थङ्कर मक्खाली गोशालके सिद्धान्तोंका वर्णन डॉ० बारुआने अपनी आजीवक नामक पुस्तकमें जैन और बौद्ध शास्त्रोंसे छानबीन करके लिखा है, क्योंकि आजीवकोके निजी - शास्त्रोंका पता नहीं चलता है; और वह वहींसे जाना जासक्ता है। यहां पर उनका पूर्ण विवरण स्थानाभावके कारण नहीं दिया जासका है, तो भी पाठकोंके अवलोकनार्थ तत्संबंधी कुछ वाक्य हम यहां लिखे देते हैं। 'मलिन्दप्रश्न' नामक वौद्धग्रन्थ में लिखा है- "सम्राट् मलिन्द ने गोशालसे पूछा - "अच्छे बुरे कर्म हैं या नही ? अच्छे बुरे कर्मोका फल भी मिलता है या नहीं ? " गोशालने उत्तर दिया * जनधर्मके वैज्ञानिक रूपकी यथार्थता जाननेके लिए श्रीयुत चम्पतरायजी वैरिष्टरकी Key of Knowledge और भसहमत संगम नामक पुस्तकें व जैन आप्रिन्य देखना चाहिए।
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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