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________________ १७४ भगवान महावीर। माननेवाले ही नहीं रहे थे, बल्कि उन्होंने आवश्यक्तानुसार उनमें संशोधन भी कर लिए थे जैसे कि उन्होंने वैदिक देवताओंकी पुना करना प्रारम्भ कर दी थी (Sen The . Ajivakas by Dr. B. M. Barua, M. A., D. Litt. Part I P.58) अस्तु, मस्करी अथवा मक्खाली गोशाल और पुरण कश्यप अलग अलग दो व्यक्ति थे जैसा कि बौद्ध शास्त्रोंसे प्रगट है। और इनमेंसे मक्खाली गोशाल संभवतः जैन मुनिका शिष्य था, क्योंकि इसके नेतृत्व कालमें आजीवक सम्प्रदाय एक व्यवस्थित धर्म बन गया था, जिसकी कुछएक बातें जैनधर्मके चारित्र नियमसे मिलती हुई प्रतीत होती हैं। जैसे जैनियोका समाधिमरण नियम अथवा सल्लेषणावत और मक्खाली गोशालका बताया हुआ चत्तारि पाणगायं चत्वारिअपाणगायं नियम अर्थात The doctrine of Four Drinkables and four Substitutes. अस्तुः । ___कोई कोई इस सम्प्रदायको जैन सम्प्रदायके ही अन्तर्गत बतलाते हैं, किन्तु श्वेताम्बर ग्रन्थ भगवतीसूत्र और आचारागसूत्रके पाठ मालूम करनेसे होता है, कि आनीवक सम्प्रदाय नैन सम्प्रदायसे भिन्न है, (जैसे दर्शनसारका उत श्लोक प्रगट करता है ।) शेष तीर्थक्षर महावीरखामीके समसामयिक महली पुन गोशाल इस सम्प्रदायके एक प्रधान आचार्य थे। भगवती गुनसे जाना नाता है. कि मङ्गली नामक एक भिक्षक औरस और उनकी पत्नी मद्राके गर्भसे गोशालका जन्म हुगा था। इसीरे उनका नाम महाडि पुन (मस्खाली) गोशाल पड़ा। महावीरवानीक
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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