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________________ श्रेणिक और चेटक। १५१ , अजातशत्रु कुणिकने अपने पिता श्रेणिक बिम्बसारको जो कि जैन धर्मानुयायी थे, कष्ट दिया था और इसीसे बौद्ध ग्रन्थ उनके अंतिम परिणामका कुछ निश्चित उल्लेख नही करते ((See Saunder's Gotama Buddha P.71.) क्योंकि अन्तमें कुणिकने जैनधर्मके परमश्रद्धालु अपने पिताको बन्धन-मुक्त करना चाहा था, जैसे कि श्रेणिकचरित्रके निम्न वर्णनसे प्रगट है, परन्तु यहांपर यह याद रखना उत्तम है कि बौद्धग्रन्थोंमें जो कुछ वर्णन है वह सदैव साफ साफ नहीं है क्योंकि जैनियोंसे उनकी पूर्ण स्पर्धा थी और उनमें अपने उन अनुयायियोंका कही भी उल्लेख नहीं है जो जैनी होगए थे। जब कि जैनशास्त्रोंमें साफतौरसे लिख दिया गया है कि जबर उसके अनुयायीने बौद्धादि परमतको ग्रहण किया था.। इस हेतु उनका वर्णन विशेष उपयुक्त होसक्ता है। अस्तु । श्रेणिक चरित्रमें लिखा है कि रानी चेलनाने कुणिकको बहुत समझाया और पिताके मोहको दर्शाया कि राजा श्रेणिकने कुमार कुणिकके लिए कितने कष्ट सहे थे, इससे कुणिकको दया आगई थी और वह अपने इस दुष्कृत्यका पश्चात्ताप करता हुआ हुआ राजा श्रेणिकको मुक्त करने जारहा था। राजा श्रेणिकने जो उसे आते देखा तो वे धवड़ागए और सोचने लगे कि आन न जाने यह क्या अनर्थ करेगा। इससे डरकर उन्होने अपना सिर दीवालसे घरमारा, जिससे उनके प्राणपखेरू उसी समय उड़कर अपने दुष्पापोंका परिणाम प्रथम नरकमें भोगनेको चले गए ! वहांसे आप आकर अगाड़ी तीर्थकर होगे।
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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