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________________ श्रेणिक और चेटक। १४७ भगवानकी बन्दना पूजा की थी और जैनधर्मका खरूप समझा था । जिससे आपको जैनधर्ममें पूर्ण श्रद्धा होगई थी और आपको क्षायिक सम्यक्त्वकी प्राप्ति हुई थी। । । ____एक दिवस राजा श्रेणिकने गौतमगणधरसे अपनीबुद्धि व्रतोंकी ओर नहीं झुकनेका कारण पूछा जिसके उत्तरमें गणधरने महाराजको बतला दिया कि मुनिराजके गलेमें सांप डालनेसे वह नर्क आयुका बंघ बांध चुके हैं, इस कारण नियमसे उनकी बुद्धि व्रतोंकी ओर नहीं झुकती । यद्यपि उन्होंने राजा श्रेणिकको भव्य और उत्तम बताया और यह भी जतला दिया कि क्षायिक सम्यक्त्वके प्रमावसे राजा श्रेणिक आगामी उत्सर्पिणी कालमें इसी भरतक्षेत्रमें पद्मनाम नामके प्रथम तीर्थकर होंगे, क्योंकि उन्होंने अंतमें सोलहभावना भानेसे तीर्थङ्कर पदका बंध बांध लिया था। । अन्तमें महाराज श्रेणिक परमोच्च श्रावक होगये थे और वै धर्मकी प्रभावनामें निशिदिन तल्लीन रहते थे। हमे मालूम है कि श्री सम्मेदशिखर पर तीर्थकर भगवानके मोक्ष स्थानोंपर आप ही ने टोंके (Shrines) बनवाई थीं, जैसे कि मि० टी० डी० बनर्जी, सव-जन, पटना हाईकोर्ट ने अपने शिखरजीके मुकद्दमेके फैसलेमें लिखा है: "The Hindu Traveller's account published in Asiatic Society's Journal for January 1824 reveals the fact, how Raja Sarenik of Magadha, contenporary of Mahaveer Snawi, bad discoYered the places of the Tirthancars and established Charan there."
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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