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________________ भगवान महावीर। उच्छख डॉ० माण्डारकर मी करते हैं और कहते है कि राजा श्रेणिकका पाणिग्रहण वैदेही (चेलना) के साथ इस युद्धके आपसी निवटेरेके उपरान्त हुआ था। और उत्तरपुराणके वर्णनसे भी श्रेणिकचरित्रकी निम्नघटनाके सदृश ही है, यही प्रगट होता है कि इस युद्धके पश्चात राजा श्रेणिकका विवाह चेलनाके साथ हुआ था। राजाचेटकका एक अन्य युद्ध अंगदेशके राजा कुणिकके साथ भी हुवा था। इसी संबंधमें श्रेणिकचरित्रमें वर्णन है कि चित्रकारने वही पट ले जाकर महाराज श्रेणिकको दिया और इसका सर्व वृतान्त बताया। और यह भी जतलाया कि महाराज चेटक अपनो पुत्रियोंको सिवाय जैनीके और किसीको नहीं देते हैं। अणिक उन पर आसक्त हो गए थे। कुमार अभय वैशालीसे उन कन्यायोंको छलसे लेने गए और वहां पर अपनेको नैनी प्रगट करते हुए उन पुत्रियोंको राजा श्रेणिककी ओर विशेष उपायोंसे आकर्षित करने लगे और अन्तमें वे सब उनके साथ चलनेको राजी होगई। परन्तु दोतो पिताके भयसे लौट गई । केवल चेलना रह गई । सो भी अकेली जानेको तैयार न थी। परन्तु अभयकुमार उसे लिचा लाए। और रानगृहमें आकर उसका पाणिगृहण श्रेणिकसे कराया, परन्तु जब उसे यह ज्ञात हुआ कि श्रेणिक बौद्ध धर्मानुयायी है तो उसे अति दुःख हुआ। और वह मलिनचित्त रहने लगी। श्रेणिकने इसन्न कारण पूछा तब उसने कह दिया कि यह राजनी भोगोपभोगकी सामग्री जिस कामक्री, जय प्राणोको हितवर्धक प्यारे सत्यधर्मका पालन ही न होसके । इस पर श्रेणिकने उनको अपने गुरुओंगी विनय आदि करनेकी आज्ञा दे दी थी।
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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