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________________ १३८ भगवान महावीर | वह महाराज श्रेणिक्के गुणोकी श्रेष्ठताके कारण उनपर आसक होगई । और सेठि इन्द्रदत्तने उसका पाणिग्रहण कुमार श्रेणिकके साथ कर दिया | कुमार आनंदसे रहने लगे I , इधर महाराज उपश्रेणिकका देहांत होगया और चलाती प्रजापर बडा अन्याय करने लगा, जिसके कारण प्रजाने दुखी हो कुमार श्रेणिकको बुला भेजा । कुमारका आगमन सुन चलाती भयभीत हो गया । श्रेणिक राज्याधिकारी हुए और शत्रुओंसे रहित होकर नीतिपूर्वक प्रजाका पालन करने लगे । “उनके राज्य करते समय न तो राज्यमें किसी प्रकारकी अनीति थी और न किसी प्रकारका भय ही था किन्तु प्रजा अच्छी तरह सुखानुभव करती थी । पहिले महाराज बौद्धधर्मके सच्चे भक्त होचुके थे, इसलिए वे उससमय भी बुद्धदेवका वरावर ध्यान करते रहते थे ।" उपरान्त जम्बूदीपकी दक्षिण दिशामें अवस्थित केरलानगरीके अधिपति राजा मृगाइने अपनी यौवनावस्थापन विलासवती पुत्री महाराज श्रेणिकके भेंट भेजी, क्योकि उनको मालूम हो गया था कि इसका वर श्रेणिक होगा। इनका ही उल्लेख संभवतः बौद्धोंके तिव्वतीय दुल्वमे वासवीके नामसे है । और उनके गर्मसे कुणिक अजातशत्रुका होना लिखा है जो स्वयं उनके पाली ग्रन्थोंक वर्णनमें ढूंढनेसे नहीं मिलता है । (See The Kshatriy Clans in Buddhist India P. 125.) बात यह है कि यहांपर बौद्धांने अजातशत्रु (कुणिक) को यथार्थमें महाराज चेटककी पुत्री चेलनासे उत्पन्न न बताकर वासवीसे, जो कि उपर्युक्त विलासवती ही प्रतीत होती है, इसीसे बताया है कि कुणिक प्रारंभ में जैनधर्मका पक्षपाती
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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