SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान महावीर। सव कालकी चाल और विधर्मियोंकी उपासे अंधकारके गर्तमें पहुंच चुके हैं। जनशास्त्रोंमें महाराज श्रेणिकके पिताका नाम उपश्रेणिक लिखा है । वे राजगृहमें रहकर मगधपर राज्य करते थे। यह बड़े धर्मवीर और शूरवीर थे। और इन्होंने अपने इर्दगिर्दके राज्यों पर विजय प्राप्त कर ली थी। चन्द्रपुरका राजा सोमशर्ना अपने पराकरके अगाडी सवको तुच्छ गिनता था परन्तु महारान उप श्रेणिकने इसे परास्त किया था। यद्यपि अन्तमें उसका राज्य असीको दे दिया था। इसी शूरवीरताके कारण संभव है कि हिन्दूओं के विष्णुपुराणों शिशुनाग वंशके चौथे राजाका नाम अत्रौजस लिखा है, जन कि श्रेणिक उसी वंशके पांचवे राना है। इस प्रकार क्षत्रौजस जैनगालोके उप-श्रेणिक ही प्रतीत होते हैं। महारान उप-श्रेणिककी रानी इन्द्राणीके गर्भसे महाराज श्रे'णिकका जन्म हुआ था। इन " कुमार श्रेणियमे सर्वोत्तम गुण थे, रुप शुभ था और अतिशय निर्मल था । वह अत्यंत भाग्यवान और लक्ष्मीवान थे।" क्रमशः कुमार श्रेणिक पढ़ने लगे और वे अपने वाल्यकालसे ही दुद्धिी चतुराईके कारण सननोको मान्य होगये। "इन्होने बिना परिश्रमके शीघ्र ही शालरूपी समुद्रको पार कर लिया था और क्षत्रिय धर्मकी प्रधानताके कारण अनेक प्रकारकी शस्त्रविगएँ भी सीख ली थी। इस प्रकार यौवनावस्थाको प्राप्त अत्यन्त बलवान श्रेमिकलपनी सुन्दरता आदि मंझनसे संपन्नये।" । एक समय महाराज उपश्रेणिक एक नए घोड़की परीक्षार , रहे थे कि वह घोड़ा उनको एक अज्ञात स्थान ले भागा और ।
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy