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________________ ANAL क्षाचूडामणि-जीवंधर। महाराज नीवंधर सब प्रकारके सुखोंसे संपन्न हो राज्यकर रहे थे। उसी समय एक दिन उनकी माता विनयाको वैराग्य हो गया और उन्होंने संसारको अनित्य समझकर पद्मा नामकी आर्यिकाके पास दीक्षा लेली। जीवंधरस्वामी वसन्तऋतुमें अपनी आठों स्त्रियोंके साथ जलक्रीड़ा कर रहे थे कि सहसा आपको वैराग्य हो गया। आपने उसी समय बारह भावनाओंका चिन्तवन किया और अपने पुत्र सत्यंधरको राज्य देकर, महावीर भगवानके समवशरणमें ना पहुंचे और वहां दिगम्बरी दीक्षा लेकर वे महान तप करने लगे। अंतमें जीवंधरस्वामी महामुनि आठों कर्मोका नाशकरके अविनाशी मोक्ष सुखके स्वामी हुए। ___इस प्रकार जीवंधरस्वामीकी कथा है। इसके वर्णनसे हमारे पहिलेके कथन 'कि महावीर खामीके समयमें समाजके जातीयबंधन आजकलकी तरह कठोर नहीं थे, और उस समयके विवाह क्षेत्रमें भी बहुत स्वतंत्रता थी' की पुष्टि होती है। और हम देखते हैं कि धार्मिक उदारता इतनी बढ़ी हुई थी कि एक शूद्र मी शुद्ध किया जाकर गृहस्थधमेका पालन करनेवाला श्रावक बनाया जा सक्का था। साथमें बहुविवाहका प्रचार होना भी प्रतीत होता है और निमित्तज्ञानके प्रचार एवं ज्योतिषशास्त्रमे बढ़ विश्वास होना भी प्रगट होता है। इनका प्रचार महावीरस्वामीके पहिलेसे जनसाधारणमें प्रचलित था। यह बात आजीवक सम्प्रदायक संस्थापक मक्खाली गोशालके वर्णनसे पाठकोंको और भी अच्छी तरह प्रकट होजायगी।
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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