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________________ क्षणचूडामणि-जीवंधर। १३१ - सांपने काट खाया था, जीवदान दिया। इससे प्रसन्न होकर राजाने वह कन्या और अपना आधा राज्यकुमारको दे दिया। कुमार पद्माके साथ कुछ दिन सुख भोगकर वहांसे चले गए। और तापसोंको सच्चे धर्मका खरूप समझाते हुए दक्षिण देशक सहस्रकूट चैत्यालयमें पहुंचे। उस चैत्यालयके किवाड़ खोलकर दर्शन किए । यह देखकर एक आदमी इन्हें प्रार्थना करके सुभद्र नामक सेठके यहां क्षेमपुरी लिवा ले गया। सेठने अपनी क्षेमश्री कन्या इनको प्रदान की, क्योंकि ज्योतिषियोने इनके विषयमें पहिलेसे कहा था। एक दिन जीवंधरस्वामी किसीसे विना कुछ कहे सुने क्षेमपुरीसे चलदिए। उनके पास जो बहुतसे वस्त्र आमूषण थे उन्हें उन्होने किसी पात्रको दे देना चाहा, परन्तु जब कोई पात्र नहीं मिला, तब रास्तेमें एक शूद्र पुरुषको पाकर उन्होंने उसे सुखका, संसारका और सागार, अनागारधर्मका स्वरूप समझाया, जिसे सुनकर वह पुरुष प्रतिबुद्ध होगया और उसने उसी समय गृहस्थधर्म स्वीकार कर लिया। इस तरह जब वह श्रावक होकर पात्र होगया, तब कुमारने उसे अपने बहुमूल्य वस्त्राभूषण उतारकर दानकर दिए। ___ वहांसे चलकर आप हेमामा नगरीमें पहुंचे। वहांके राजा इदमित्रने इन्हें अपनी कनकमाला नामक सुन्दर कन्या व्याह दी, क्योंकि कुमारने उसके पुत्रोको धनुष-विद्यामें निपुण बना दिया था। यहां पर इनको गन्धोत्कट सेठके पुत्र नन्दाब्य और पद्मास्य मित्रोंसे भेट हुई। उनके कहने पर आप अपनी माता विजयासे मिलकर राजपुरीमें पहुंचे, वहां सागरदत्त सेठने अपनी कन्या विमला इनको व्याह दी। उसने कहा कि “आज मेरी दुकानके
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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