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________________ (८) है, जिन्होंने मुझे न केवल आवश्यक ग्रन्थोंको ही देकर उत्साहित किया, बल्कि समग्र लिखित-कॉपीको पढ़कर अपनी अमूल्य सम्मतियोंद्वारा मुझे पूर्ण साहाय्य और इस पुस्तककी भूमिका लिखकर वास्तविक उत्साह प्रदान किया है। इसके लिए मैं उनके निकट विशेष रूपसे छतज्ञता पाशमें वेष्टित हूं। साथमें ही मैं श्रीमान् जैनधर्मभूषण व शीतलप्रसादनी संपादक "जैनमित्र " का भी आभारी हूं, जिन्होने भी प्रस्तुत पुस्तकके प्रथमके कुछ परिच्छेदोंका अवलोकनकर मुझे अनुग्रहीत किया था। तथैव श्रीयुत बाबू हीरालालनी एम० ए० एल० एल० बी० संस्कृत रिचर्स स्कॉलर, प्रयाग विश्वविद्यालयके निकट भी मैं आभारी हूं, जिन्होंने भगवान महावीरकी सर्वज्ञताका प्रमाणीक परिगिष्ट लिखकर इस पुस्तकका महत्व बढ़ा दिया है। अथच मै इस सम्बन्धमें उन सर्व आचार्यों और ग्रन्थकर्ताओंका भी मी आभार माने विना नहीं रह सक्का, जिनके ग्रन्थोंसे मैंने सहायता ग्रहण की है । इन अन्थोंकी नामावली पृथक् दी हुई है। ____ अस्तु, अन्तमें मुझे यह प्रकट करते हुए अत्यन्त हर्ष है कि मेरे प्रियमित्र सेठ मूलचंद किसनदासजी कापडियाका ही सब कुछ श्रेय है कि उनके अनुग्रहसे ही यह ग्रन्थ आज सभ्यसंसारके निकट प्रकाशमें आ रहा है । प्रभू वीरकी पवित्र संस्तुतिसे उनके इस साधु-श्रेयका वास्तविक फल प्राप्त हो, यही भावना है। गयम् भवतु । विनीत-- कार नियम दिवस कामताप्रसाद जैन, सं० २४५० अलीगंज (पटा)
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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