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________________ (१०) अमरमाही पगड़ी बाँधने व डंको की पछेवड़ी बाँधने डीड़ी पहर कर मोजाना दार से आशीर्वाद देने के लिये प्रान का व राज में पण्डित ज्योतिपियो में भरती करने आदि इज्जत बक्षो । इसका वृत्तान्त वि० सं० १६१४ पौष शुक्ला १२ की मिती में राजकीय कपड़ा का भण्डार व पाण्डेजी की ओवरी मे दर्ज है। बाद मे महाराणाजी श्री शम्भूसिहजी के राज समय मे राजकीय पाठशाला पण्डित रत्नेश्वरजी के निवेदन पर कायम हुई । उसका नाम 'शम्भूरत्न पाठशाला' रक्खा गया। वहाँ पर शहर के छात्र हमारे पोसाल पर पढ़त थे उनको लेजा कर वहाँ स्थापित किए और उक्त पण्डितजी को प्रधान अध्यापक (हेडमास्टर ) नियत किये। और मिस्टर इंगल साहब को सुगरिएटेण्डेण्ट कायम किया। हमारे पोसाल पर शहर के छात्र,दिवाणादिको के पुत्र ब सर्व जाति के लड़के पढते थे। वि० सं० १९२८ में इनको ग्राम का दान देना निश्चय हुआ। लेकिन यह आध्यात्मिक बल के थे तो निवेदन कराया के मै पृथ्वी का दान लेना नहीं चाहता उस पर मासिक २०) रुपये कर बक्षे और ताम्बापत्र कर बना "उपर श्रीरामजी वगैरह दस्तूर माफिक सहो व भाला फिर महाराजधिराज महाराणा जी श्री शम्भूसिंहजी आदेशात् माहातमा खेमराज डूंगरसिंह का कस्य थने रुपया २०) अखरे बीस महावारी दाण का धर्मादा मे श्रीरामार्पण कर बख्श्या है सो हमेशा मिला जायगा । यो पुण्य श्री जो को है आगे मामूली श्लोक, इन महाशयो,के नाम शिष्य धर्मपालन करने वालो के पात्रो का अलकाब भी वास्ते मुलाहजे के संक्षेप रूप में दर्ज करता हूँ। महता अगर चन्दजी के वंशज महता देवी चन्दजी
SR No.010402
Book TitleMahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaktavarlal Mahatma
PublisherVaktavarlal Mahatma
Publication Year1945
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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