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________________ है। अध्यात्म हमेशा unchartered sea के जैसा क्षेत्र ही रहा है। मेरी साधना मुझे मेरे कवि होनेसे मिली है। जब मैं सत्यं ज्ञानं अनन्तं ब्रह्म' कहता हूँ, तब यह सारा विश्व मुझे सत्य रूप दीख पड़ता है। जिस विश्वको अिन्कार करनेवाला मायावाद मेरे पास नहीं है ।' अिसी तरह अनेक बातें कहीं। सारे प्रवचनकी रिपोर्ट देनेका यह स्थान नहीं है । मुझे अितना ही बताना है कि गुरुदेवके नामसे अपनी मण्डलीमें जो हमेशा पुकारे जाते थे, वे स्वयं गुरु-जैसी किसी वस्तुको मानते ही नहीं थे। ४३ १९२१में बेजवाडाकी अखिल हिन्द कांग्रेस महासमिति (A. I.C.C.) ने तय किया था कि लोकमान्य तिलकके स्मारकमें अक करोड़. रुपया अिकट्ठा किया जाय । असी सिलसिलेमें धन अिकट्ठा करनेकी कोशिगे चल रही थीं। अक दिन श्री शंकरलाल बैंकरने आकर कहा'हमारे प्रान्त (बम्बी ) में जितनी मुख्य मुख्य नाटक कम्पनियाँ हैं, वे सब मिलकर अपने सबसे अच्छे नटों द्वारा अक किसी अच्छे नाटकका अभिनय करेंगी। झुस दिन अगर बापू थियेटरमें अपस्थित हो जाये, तो वे लोग सुस खेलकी सारी आमदनी तिलक स्वराज्य फण्डमें देनेके लिओ तैयार हैं।' अन्होंने आगे कहा - 'हजारोंकी नहीं, लाखोंकी बात है, क्योंकि टिकटोंकी मनमानी कीमत रखेंगे ।' बापू ओक क्षणका भी विलंब किये बगैर बोले ---- 'यह नहीं हो सकता। मैं कभी धंधादारी नटोंके नाटक देखने नहीं जाता । कोभी मुझे करोड़ रुपया भी दे, तो भी मैं अपना नियम नहीं तोड़ सकता ।' शंकरलालजीका प्रस्ताव जैसाका तैसा रह गया ।
SR No.010402
Book TitleMahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaktavarlal Mahatma
PublisherVaktavarlal Mahatma
Publication Year1945
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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